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________________ २२) त्रिपष्टि शलाका पुरुष-चरित्र पर्व १ सर्ग १. सेठकी बातें सुनकर सूरिजी बोले, "हे सार्थवाह ! (हे सेठ ) तुमने रस्तेम हमको हिंसक पशुओंसे और चोरोंसे बचाया है। ऐसा करके तुमने हमारा सब तरहसे सम्मान किया है। तुम्हारे साथके लोगही हमको आहारपानी (खानापीना) देते रहे हैं, हमको (खानेपीनेकी) कोई तकलीफ नहीं हुई । इसलिए हे महामति ! आप जरासा भी खेद न करें ।" ( १३१-१३२ ) सेठ बोला "सन्त पुरुप सदा सब जगह गुणही देखते हैं। "गुणानेत्र संतः पश्यति सर्वतः ।" ___ इसलिए आप मुझ दोपीके लिए भी ऐसी बातें कहते हैं। मैं अपने प्रमादके (लापरवाहीके) लिए बड़ा शरमिंदा हूँ। (अब ) श्राप प्रसन्न होकर साधुओंको आहारपानी लेनेके लिए भेजिए। मैं इच्छा के अनुकूल आहारपानी दूंगा । (१३३-१३४) आचार्य बोले, "तुम जानते हो कि वर्तमान योगसे अकृत (नहीं किया हुआ ) अकारित ( नहीं कराया हुआ ) और अचित (जीव रहिन) अन्नादिकही हमारे उपयोगमें यात हैं. 1 ( १३५) "मैं ऐसाही आहारपानी साधुओंको बहोराऊँगा (दूंगा) जो आपके उपयोगमें थाने लायक होगा " यह कहकर सार्थवाह अपने डेरेपर गया। (१३६) उसके बाद दो साधु याहारपानी लेने उसके डेरेपर गए । दैवयोगसे कोई चीज साधुओंको देनेलायक उसके डेरेपर
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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