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________________ प्रथम भव-धनसेठ .. किया था, कोई आगमका अध्ययन कर रहे थे, कोई वाचना दे रहे थे (पढ़ा रहे थे), कोई भूमि प्रमार्जन कर रहे थे (इस तरह जमीनको साफ कर रहे थे कि उसपरसे जीव हट जाएं और कोई मरने न पावे), कोई गुरुको वंदना कर रहे थे, कोई धर्मकथा सुना रहे थे, कोई श्रुत (शास्त्र) का उदाहरण दे रहे थे, कोई अनुज्ञा (इजाजत या आज्ञा). दे रहे थे और कोई तत्व समझा रहे थे। (१२२-१२४ । ... सेठने पहले धर्मघोष श्राचार्य महाराजकी और फिर क्रमशः सव साधुओंकी वंदना की । आचार्य ने सेठको पापका नाश करनेवाला 'धर्मलाभ' (आशीर्वाद दिया। (१२५) फिर वह आचार्यश्रीके चरणकमलोंमें राजहंसकी तरह प्रसन्नतापूर्वक बैठा और बोला, "हे भगवन् ! मैंने आपको अपने साथ आनेके लिए कहा था, मगर मेरे वे वचन शरदऋतुके बादलोंकी गर्जनाके समान मिथ्या आडम्बरही हुए। कारण, उस दिनके बाद मैंने आजतक न श्रापके दर्शन किए, न आपकी वंदनाकी और न अन्नपान या वखसे आपका सत्कार ही किया। जागते हुए भी मैं सोता रहा । मैंने आपकी अवज्ञा की, और अपने वचनका भंग किया। हे महाराज, मेरे प्रमादाचरणके लिए (मैंने लापरवाही की इसके लिए) आप मुझे क्षमा करें। (आप तो पृथ्वीके समान क्षमाशील हैं।" कहा है "सर्वसह महांतो हि सदा सर्वसहोपमाः।" . [महात्मा सदा सब कुछ सहते हैं इसलिए वे सदा सबकुछ सहन करनेवाली(पृथ्वी) के जैसे (गंभीर) होते हैं।] (१२६-१३०)
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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