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________________ • भरत-बाहुवलीफा वृत्तांत [३६४ अति भारसे कूर्म ( कछए) की पीठको तकलीफ पहुँचाते थे, महा वराहकी ऊँची डाढको झुकाते थे, और शेषनागके फरणके गर्वका खर्व करते थे। वे ऐसे मालूम होते थे मानों सभी दिग्ग. जोको कुज बना रहे हैं; वे सिंहनादसे ब्रह्मांडरूपी पात्रको ऊँची आवाजवाला करते थे, उनके ताल ठोकनेकी उच्च ध्वनिसे ब्रह्मांडको फोड़ते हों ऐसा मालूम होता था। प्रसिद्ध ध्वजाओंके चिह्नोंसे पहचानकर, पराक्रमी अपने प्रतिवीरका नाम लेकर उसका वर्णन करते थे और अभिमानी और शौर्यवान वीर आपसमें लड़ाईके लिए ललकारते थे। इस तरह दोनों सेनाओंके मुख्य मुख्य वीर मुख्य मुख्य वीरोंके सामने खड़े हुए। मगर जैसे मगरके सामने आता है वैसे हाथीवाले हाथीवालोंके सामने हुए, तरंगें जैसे तरंगोंकेसे टकराती हैं ऐसेही सवार सवारोंके सामने आए; वायु वायुकी तरह रथीपुरुष रथियोंके सामने आए और सींगवाले जैसे सींगवालोंके सामना करते हैं वैसे प्यादे प्यादोंके सामने हुए । इस तरह सभी वीर भाले, तलवारें, मुद्गर और दंड वगैरा आयुध आपस में मिलाकर क्रोध सहित एक दूसरेके सामने आए। (४१४-४३४) . उसी समय तीन लोकके नाशकी शंकासे डरे हुए देवता आकाशमें जमा हुए और उन्होंने सोचा, दो ऋषभ पुत्रोंकी अपने दोनों हाथोंकी तरह आपसहीमें लड़ाई क्यों हो रही है ?" फिर उन्होंने दोनों तरफके सैनिकोंसे कहा, "हम जबतक तुम्हारे मनस्वी स्वामियोंको उपदेश देते हैं तबतक तुम लोग लड़ाई न करो, अगर कोई करेगा तो उसे ऋषभदेवजीकी आन है, शपथ है।" देवोंने ऋषभदेवजीकी आन दिलाई इसलिए दोनों तरफ..
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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