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________________ ३९८] त्रिषष्टि शलाका पुरुषचरित्रः पर्व १. सर्ग ५. विलासी रतिवार्ता करता है ऐसे लड़ाईकी बातें करते, अाकाशमें आए हुए सूर्य के समान बड़े उत्साह और पराक्रमवाले दोनों ऋपमपुत्र अपनी अपनी सेनाके बीचमें आए। उस समय अपनी अपनी सेनाके बीचमें स्थित भरत और बाहुवली जंबूद्वीपके बीच में स्थित मेरुपर्वतकी शोभाको धारण करते थे। उन दोनों सेनाओंके बीचकी जमीन, निपध और नीलवंत पर्वतके बीच में आए हुए महाविदेह क्षेत्रकी जमीनके जैसी मालूम होती थी। कल्पांतकालके समयमें जैसे पूर्व और पश्चिम समुद्र अामने सामने बढ़ते है वैसेही, दोनों तरफकी सेनाएँ पंक्तिबद्ध होकर श्रामने-सामने चलने लगी । सेतुबंद जैसे जलके प्रवाहको इधर उधर नाते रोकता है वैसेही, द्वारपाल पंक्तिसे बाहर निकलकर इधर उधर जाते हुए सैनिकोंको रोकते थे। तालके द्वारा संगीतमें एक ही तालपर गानेवालोंकी सभी सुभट राजाकी आज्ञासे एकसे पैर रखकर चलते थे। वे शुरवीर अपने स्थानका उल्लंघन किए बगैर चलते थे, इससे दोनों तरफकी सेनाएँ एकही शरीरवाली हों ऐसे शोभती थीं। वीर मुभट भूमिको लोहवाले चक्रोंसे फाइते थे, लोइकी कुदाली जैसे, घोड़ोंके तेज खुरोंसे खोदते थे; लोहके अर्द्धचंद्र हों ऐसे ऊँटोंके सुरोंसे भेदते थे, प्यादोंके जोड़ोंके वनके समान नालासे बूंदते थे, सुरप्र' याणके जैसे भैसी और चलोंके खुरोंसे खंडन करते थे और मुद्गरके समान हाथियों के परोसे चूर्ण करते थे। अंधकारके समान रजसमूहसे वे आकाशको ढकते थे और सरजकी किरणों के समान चमकते हुए शस्त्रास्त्रोंसे चारों तरफ प्रकाश फैलाते थे। वे अपने १-घोड़े के खुरके प्राकारका वाग।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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