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________________ ४.०) त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्र: पर्व १. सर्ग ५. के उत्साही सैनिक चित्रलिखितसे हो रहे । वे सोचने लगे ये देवता बाहुबलीकी तरफके हैं या भरतके पक्षके। ऐसा कोई मार्ग निकालना चाहिए जिससे काम न बिगड़े और लोगोंका कल्याण हो।" यो सोचते हुए देवता पहले चक्रवर्तीके पास गए । वहाँ 'जय जय' शब्दोंके साथ आशीर्वाद देकर प्रियभापी देवता, मंत्रियोंकी तरह युक्ति सहित इस तरह योले,-(४३५-४४१) ... "हे नरदेव ! इंद्र जैसे पूर्वदेवोंको (दैत्योंको ) जीतता है वैसेही आपने छःखंड भरतक्षेत्रके सभी राजाओंको जीता है, यह आपने ठीकही किया है। हे राजेंद्र ! पराक्रम और तेजसे सभी राजारूपी मृगोंमें आप शरभ (अष्टापद) के समान है। श्रापका प्रतिस्पर्धी कोई नहीं है। घड़ेंमें पानीका मंथन करनेसे जैसे मक्खनकी श्रद्धापूरी नहीं होती अर्थात मक्खन नहीं मिलता उसी तरह आपकी रणकी इच्छा पूरी नहीं हुई, इसलिए आपने अपने भाईके साथ लड़ाई शुरू की है। मगर यह लड़ाई ऐसी है मानों अपने एक हाथसे दूसरे हाथको मारना बड़ा हाथी जैसे बड़े वृक्षसे अपना गंडस्थल खुजाता है; इसका कारण उसके गंडस्थलमें उठी हुई खुजली है, वैसेही भाईस युद्ध करनेका कारण लड़ाई के लिए चलती हुई आपके हाथकी खुजलीही है। वनके उन्मत्त हाथियों के तुफानसे जैसे वनका नाश होता हे ऐसेही आपके भुजाओंकी खुजलीसे जगतका नाश होगा। मांस खानेवाले लोग, से अपनी जीभके स्वादको तृप्त करनेके लिए (गरीय) पशु-पक्षियोंको मारते है एसेट्टी, आपने अपने खेलके लिए जगतका संहार करनेकी बात क्यों शुभ की है ? जैसे
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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