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________________ ३] त्रिषष्टि शलाका पुरुषः चरित्रः पर्व १. सर्ग ५. - - द्वारा घिर हुए. महाराजा, माना अनेक मूर्तियाँबान्ने हो एसे, नगरसे बाहर निकन्न । एक हजार यज्ञास अधिष्ठित चक्ररन, मानी मेनापनि होगम, सेनाकं श्राग चला । महाराजाक विदा होनकी बानको सूचिन करता हुश्रा धूलिका समूह उड़ उड़कर चारों तरफ फैल गया; गला मालूम होता था कि वह शत्रुओं-. का गुपचर-समूह है। उस समय लाम्बी हाथियों के चलने से ऐसा मालूम होना था कि, हाथियों को पैदा करनेवाली भूमिमें हाथी नहीं रहे हैं, और घोड़ों, री, वञ्चरों और ऊँटोंके समूहसे मान्नुम होना था कि पृथ्वीपर अब कहीं बाहन नहीं रहे हैं। समुद्र देखनेवालको जग नाग जगत जलमय मालूम होता है सही, प्यादोंकी सेना दबकर मारी पृथ्वी मनुष्यमय मालूम होती थी। रस्ने चलन छग महाराज हरेक शहरम, हरेक गाँव में और हरेक रम्नपर लोगाम हानी हुई इस नरहकी बातचीत मुनने लगे। इन गाजाने एक क्षेत्र (प्रदेश) की तरह सार भरतक्षेत्रको जीता है; और मुनि जैसे चौदह पूर्व प्राप्त करते हैं. ऐसेही इन्होंने चौदह रत्न पाप है। श्रायुधांकी तरह नव निधियों इनके वश हुई है। इतना होनेपरमा महाराज किस तरफ और क्यों जातं है ? शायद अपना देश देखनको जा रह हैं, मगर शत्रुओंको जीतनका कारगाउपचकारन इनके यांग श्राग क्यों चल रहा है ? मगर दिशा देग्यनस नो अनुमान होता है कि वे बाहुबली पर चढ़ाई करने जा रहे हैं। ठीकही कहा गया है कि "अहो अखंडप्रसराः कपाया महतामपि ।" [अहो ! महान पुरयांम मी.महान वेगवान कषाय होती हैं। सुना जाता है, कि बाहुबती देवनायों और असुरों के लिए भी
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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