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________________ भरत बाहुवलीका वृत्तांत [३८५ - अजेय है। इससे जान पड़ता है कि उसको जीतनेकी इच्छा करनेवाले ये राजा अँगुलीसे मेरुको धारण करनेकी इच्छा रखते हैं। इस काममें-छोटे भाई बड़े भाईको जीतेंगे तो भी और बड़े छोटेकोजीतेंगे तो भी दोनों तरहसे महाराजाफाही महान अपयश होगा।" (२६२-२७८) सेनासे उड़ती हुई धूलिके पूरसे, मानों विंध्यपर्वत घढ़ रहा हो ऐसे,चारों तरफ अंधकारको फैलाते, घोड़ोंके हिनहिनाने, हाथियों के चिंघाड़ने, रथोंकी ची ची और प्यादोंके खम ठोकनेइस तरह चार तरहकी सेनाके शब्दोंसे, आनक नामके बाजेकी तरह दिशाओंको गुंजाते, गरमीके मौसमके सूरजकी तरह रस्ते. की सरिताओंको सुखाते, जोरकी हवाकी तरह रस्तेके वृक्षोंको गिराते, सेनाकी ध्वजाओंके वस्त्रोंसे आकाशको बकमय बनाते, सेनाके भारसे तकलीफ पाती हुई पृथ्वीको हाथियोंके मदसे शांत करते और हर रोज चक्रके अनुसार चलते महाराज, सूर्य जैसे दूसरी राशिमें जाता है ऐसेही, वहली देशमें पहुंचे और देशकी सीमापर छावनी डाल समुद्र की तरह मर्यादा पना वहाँ रहे। (२७६-२८४) उस समय सुनंदाके पुत्र बाहुबलीने, राजनीतिरूपी घरके खंभेके समान जासूसोंसे चक्रीका आगमन जाना। इसलिए उसने भी रवाना होनेकी भंभा बजवाई; उसकी आवाज मानों स्वर्गको भभा-ध्वनिरूप बनाती हो ऐसी मालूम हुई। प्रस्थान. मंगल करके वह मूर्तिमान कल्याण होऐसे भद्र गजेंद्रपर उत्साहकी तरह सवार हुआ। बड़े बलवान, बड़े उत्साही, समान काम
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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