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________________ भरत-बाहुवलीका वृत्तांत . [३९३ mon लिए जय प्राज्ञा करते हैं तब अधिकारी प्रायः स्वार्थ के अनुसार उत्तर देते हैं और व्यसनको बढ़ाते हैं, मगर सेनापति तो, पवन जैसे आगको बढ़ाने के लिए होता है वैसेही, श्रापका तेज बढ़ाने के लिएही हैं। हे स्वामी ! सेनापति, चक्ररत्नकी तरह, बचे हुए . एक भी शत्रुको पराजित किए बगैर संतुष्ट नहीं होगा। इस. लिए अब देर न कीजिए। जैसे आपकी आज्ञासे हाथमें दंड लेकर सेनापति शत्रुका ताड़न करता है वैसेही, प्रयाण-भंभा ( रवाना होनेका वाजा ) बजवाइए । सुघोपा (देवताओंका एक वाजा) के वजनेसे जैसे देवता जमा हो जाते हैं वैसेही,भभाकी आवाजसे वाहनों और परिवारोंके साथ सैनिक लोग जमा हों और सूर्यकी तरह, उत्तर दिशामें रही हुई तक्षशिलाकी तरफ आप, तेजकी वृद्धिके लिए प्रयाण करें। आप खुद जाकर भाईका स्नेह देखिए और सुवेगके कहे हुए वचन सत्य है या मिथ्या इसकी जाँच कीजिए।" (२५३-२६१ ) ऐसाही हो।' कहकर भरतने मुख्य मंत्रीकी सलाह मान ली। कारण "युक्तं वचोऽपरस्यापि मन्यते हि मनीषिणः ।" [बुद्धिमान लोग युक्ति-संगत पराएके वचनको भी मानते हैं। ] फिर शुभ दिन और मुहूर्त देख, यात्रा-मंगल कर महाराज प्रयाण के लिए पर्वतके समान ऊँचे हाथीपर सवार हुए। मानों दूसरे राजाकी सेना हों ऐसे रथों, घोड़ों और हाथियोंपर सवार होकर हजारों सेवक विदाईके बाजे बजाने लगे। एक समान तालके शब्दसे संगीतकारोंकी तरह विदाईके वाजे सुनकर सारी फौज जमा हो गई। राजाओं, मंत्रियों, सामंतों और सेनापतियों
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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