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________________ भरत चक्रवर्तीका वृत्तांत [३४१ हों इस तरह बत्तीस हजार राजा उत्तर तरफकी सीढ़ियोंसे स्नानपीठपर चढ़े और चक्रवर्ती थोड़ी दूर भूमिपर, भद्रासनोंपर बैठे। वे विनयी राजा ऐसे हाथ जोड़कर बैठे जैसे देवता (इंद्रके सामने) बैठते हैं। सेनापति, गृहपति, वर्द्धकि (बढ़ई) पुरोहित और सेठ वगैरा दाहिनी तरफकी सीढ़ियोंसे स्नानपीठ पर चढ़े और अपने योग्य प्रासनोपर इस तरह हाथ जोड़कर बैठे मानों वे चक्रीसे कुछ विनती करना चाहते हों। फिर, आदिदेवका अभिषेक करनेके लिए जैसे इंद्र आते हैं वैसेही, इन नरदेवका अभिषेक करनेके लिए उनके आभियोगिक देवता आए । जलसे पूर्ण होनेसे मेषके समान, मुखभागपर कमल होनेसे चक्रवाक पक्षियोंके समान और अंदरसे पानी गिरनेसे आवाज होती है. इससे बाजेकी ध्वनिका अनुसरण करनेवाले शब्दोंवालोंके समान स्वाभाविक रत्नकलशोंसे वे आभियोगिक देव महाराजका अभिषेक करने लगे। फिर मानों अपने नेत्र हो ऐसे, जलसे भरे हुए कुंभोंसे बत्तीस हजार राजाषोंने शुभमुहूर्तमें उनका अभिषेक किया और अपने मस्तकपर कमलकोशके समान हाथ जोड़, "आपकी जय हो! आपकी जय हो!" बोलते हुए चक्रीको बधाई देने लगे (मुवारकवाद देने लगे)। उनके बाद सेठ वगैरह जलसे अभिषेक कर, उस जल के समानही उज्ज्वल वाक्योंसे स्तुति करने लगे। फिर उन्होंने पवित्र, रोयाँदार, कोमल और गंधकपायी वनसे माणिक्यकी तरह चक्रीके अंगको पोंछा तथा गेरु जैसे सोनेको चमक. दार बनाता है वैसेही महाराजके शरीरको(तेजस्वी-सुंदर बनानेके लिए) गोशीपचंदनके रसका लेप किया। देवताघोंने, इंद्रके
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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