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________________ ___ ३०३ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग ४. दूसरे दिन महाराजाने सुपेण नामक सेनापतिको बुलाया और इंद्र जैसेनेगमेपी देवताको आज्ञा करता है वैसे, उसे प्राज्ञा की, "तुम चर्मरत्नसे सित्रु नदी उतरकर सिंधु, समुद्र और वैताठ्यपर्वतकं बीचमें श्राप हुए दक्षिणमिधुनिष्कुट (सिंधुके दक्षिण किनारेवाले बगीचे के समान प्रदेश) को जीतो और बेरके फलकी तरह, वहाँरहनेवाले म्लेच्छ लोगोंको आयुध रूपी लकड़ीसे माड़कर चर्मरत्नके पूण फलको प्राप्त करो।" सुपेण सेनापतिन चक्रवर्तीकी आज्ञा मानी। वह मानों वहींका जन्मा इबा हो ऐसे, जल-स्थलके ऊँचे नीचे सभी भागांम, दूसरे किलों में तथा दुर्गम स्थानों में जानेवाले सभी मागाँसे परि चित था, म्लेच्छ भाषाका जानकार था, सिंहके ममान पराक्रमी था, सूर्यके समान नजम्बी था, बृहम्पतिके जैसा बुद्धिमान था और सभी लक्षणोंसे युक्त था। वह नत्कालही अपने ढरेपर आया। उसने मानों अपनही प्रतिबिंब ही ऐसे सामंत राजाओंको चलनेकी आज्ञा दो। फिर वह स्नान कर. बलिदान दे, पर्वतके समान ऊँचे गजरत्नपर सवार हुआ। उस समय उसने थोड़े मगर बड़े कीमतां प्राभूषण पहने थे, कवच धारण किया था, प्रायश्चित्त और कोतुकमंगल किया था, इसी तरह और रत्नांका दिव्य हार धारण किया था; वह ऐमा मालूम होता था, जयलक्ष्मीने उसके गले में अपनी मुज-लता डाली है। पट्टहस्तिकी तरह वह पटेके चिह्नसे शोभता था। उसकी कमरपे मृतिमती शक्तिके समान एक क्षुरिका (कटार) थी; उसकी पीठपर सरल आकृतिबाले और सोनके बने हुए मुन्दर दो भाये थे, वे ऐसे लान पड़ते थे, मानों पीटेकी तरफसे भी युद्ध करने के लिए दो
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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