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________________ भरत चक्रवर्तीका वृत्तांत : [३०३ बैंक्रिय हाथ हैं । वह गणनायकों, दंडनायकों, सेठों, सार्थवाहों, (कारवाँके नेताओं, संधिपालों और नौकरों आदिसे युवराजकी तरह घिरा हुआ था। उसका अग्रासन (सम्मानका स्थान) ऐसा निश्चल था, मानों वह आसनके साथही जन्मा हुआहो। श्वेत छत्र और चामरोंसे सुशोभित उस देवोपम सेनापतिने अपने पैरके अँगूठेसे हाथीको चलाया। चक्रवर्तीकी आधी सेनाके साथ वह सिंधुके किनारे गया। सेनासे उड़ती हुई रजसे वह किनारा ऐसा बन गया मानों वह वहाँ सेतुबंध कर रहा है (पुल बाँध रहा है), सेनापतिने अपने हाथसे चमेरत्नको-जो बारह योजन तक बढ़ सकता है, जिसमें सवेरे चोया हुआ नाज साँमको उग आता है और जो नदी, झील, और समुद्रको पार करने में समय होता हैस्पर्श किया। स्वाभाविक प्रभावसे उसके दोनों किनारे फैले। सेनापतिने उसे उठाकर जलमें तेलकी तरह रखा । फिर रस्तेकी तरह वह सैना सहित उसपर चलकर नदीके दूसरे किनारे गया। (२४८-२६६) . सिंधुके दक्षिणके सभी प्रदेशोंको जीतनेके लिए वह प्रलयकालके समुद्रकी तरह वहाँ फैल गया । धनुपक निर्धोपसे (शब्दसे ) दारुण और युद्धमें कौनूहुली-उसने कुतूहल (खेल) में ही सिंहकी तरह सिंहल लोगोंको जीत लिया; बर्बर लोगोंको खरीदे हुए गुलामोंकी तरह अपने आधीन किया और टंकणों को घोड़ों की तरह राजचिह्नोंसे अंकेत किया। जलरहित रत्नाकरके समान रत्न-माणिक्यसे भरे हुए यवनद्वीपको उस नरकेसरीने खेलही खेलमें जीत लिया। उसने कालमुख जातिके म्लेच्छोंको जीत लिया, इससे वे भोजन न करते हुए भी मुंहमें उँगलियाँ रानने
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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