SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौबीस तीर्थकर--स्तुति - [कमट और धरणद्र दोनों अपने अपने योग्य काम करते थे; परंतु जिन श्री प्रभुकी भावना दोनोंके लिए समान थी वे श्री पार्श्वनाथ प्रभु तुम्हारे कल्याणका कारण बनें।] .. कृतापराधेपि जने, कृपामथरतारयोः ।। .. ईपद्वाष्पायोभद्र, श्रीवीरजिननेत्रयोः ।। २६ ॥ . [श्री वीरभगवानकी जिन आँखोंकी पुतलियोंमें अपराध करनेवालोंपर भी दया दिखाई देती है, और जो (उस दयाके कारण ही ) आँसुओंसें भीज जाती हैं उन आँखोंका कल्याण हो। + + + + + .. ...ऊपर चौवीस तीर्थंकरोंकी स्तुति की गई है। उन्हीं चौवीस तीर्थकरोंके समय में बारह चक्रवर्ती, नी अर्द्ध चक्रवर्ती (वासुदेव),नौवलदेव, नौ प्रति वासुदेव हुए हैं। ये सब इस अवसर्पिणी कालमें इसी भरतक्षेत्र में हुए हैं। ये त्रिषष्टि (६३) शलाका पुरुष कहलाते हैं । उनमेंसे कइयोंको मोक्षलक्ष्मी प्राप्त 'हुई है और कइयोंको होनेवाली है। ऐसे शलाका-पुरुपत्व से सुशोभित महात्माओंके चरित्र हम कहते हैं। कारण" . "महात्मनां कीर्तनं हि, श्रेयो निश्रेयसास्पदम् ।" (महात्मा लोगों के चरित्रोंका कीर्तन करना, कल्याण व मोक्षका स्थान रूप है।). प्रथम भगगन ऋषभदेवजीका चरित्र कहा जाता है। उनको जिस भवमें सम्यक्त्व हुआ. उसी भवसे यह कथन आरंभ होता है। इसीको उनका प्रथम भव कहा गया है। (२७ से ३०) १. वर्णन टिप्पणियों में देखो। . . . . . २. संगम अपराध करनेवाला था उसकी कथा टिप्पणियों में देखो। ३-जो उसो भव में अथवा आगामी भव में अवश्यमेव मोक्ष जाने नाते होते हैं---उनको शलाका पुरुष कहते हैं। .
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy