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________________ ४ विष्टि शलाका पुप-चरित्रः पर्व १. मर्ग १. - - L - - [श्री मुनियननाथकी जो वाणी सारी दुनियाकी मोहनीय कमन्पी निद्राम लिए प्रातःकालंक समान है उस देशना-वाणीकी हम स्तुति करने हैं। (अर्थात--जल सोते हुए प्राणी सवेरा होने पर नाग जाने है बस ही श्री मुनिझुंबतनाथकी उपदेश-वाणी मुनकर मोहक वा में पड़े हुए प्राणी सावधान होकर आत्मनाथन करने लगते हैं।)] लुटना नमनां मृनि-निमलाकारकारणम् । बारिप्लवा इत्र नमः, पातु पादनखांगवः ॥ २३ ॥ [श्री नमिनायक वगणांक नोंकी जो किरणे नमस्कार करने हुए, प्राणियोंकि मस्तकपर पड़ती है और जल प्रवाहकी तरह (उनके दिलोंको) निमल करनेका कारण बनती है. वे किरण नुम्हारी रक्षा करें।] यदुवंशसमृद्दुः, क्रर्मक महताशन । - अरिष्टनमिमंगवान, भूयाद्वारिष्टनाशनः ॥ २४ ॥ . [जो अदुवंशनापी समुत्रके लिए चंद्रमाके समान हैं, और जो कमनापी लगलक लिप, आगंक समान है. वे भगवान अरिएनेमि तुम्हारे. अरियको (दुःखों व आफ्तोंको) नाश करें।] कैमठे धरणेंद्र.च, स्वाचितं कर्म कुर्वति । प्रमुस्तुल्यमनोवृत्तिः, पावनायः श्रियेस्तु वः ॥ २५ ॥ - १. कपट और यादी नया हिनयिमि देला ,
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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