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________________ १. प्रथम भव-धन सेठ जट्टाप नामका एक (बड़ा) द्वीप ( टापू) है। वह अमुल्य समुद्रों तथा असंथ्य (छोटे छोटे) टापुओं रूपी कंकणों तथा बज वेदिकामाले बिरा हुआ है। यह नदियों, क्षेत्रों, और घर पर्वताल मुशामिन है । उसके वीचम. सोने और रत्नों वाला मैन पर्वत है । बह जंबुद्धापकी नामिके समान जान पड़ता है। मन पर्वत एक लाख योजन ऊंचा है। वह तीन मेखलायासे मुशासित है। (पहली मन्त्रला नंदन वन है, दूसरा मैत्रला सोमनस बन है और तीसरी मेन्टला पांडक दन है।) उसकी चूलिका (नित्ररकी समतल भूमि ) चालीस योजन की है, वह अनेक अर्हत-मंदिरोंले नुशामिन है। .. मेन पर्वतकी पश्चिम तरफ विदेह क्षेत्र है। उसमें क्षिति प्रतिप्टिन नामका नगर है। वह भूमंडल मंडन (अलंकार) समान है। [३३] - इस नगर में 'प्रसन्नचन्द्र' नामका गजा था । ब्रह धर्म-क्रमम सावधान था । वन-वैभवसे वह इंद्रक समान मुशामित होता था। [३] .....- वर्ष कात, क्षेत्र क्षेत्रों को बुद्धा अनंबाला पर्वत । -बारकोम वा आर नाल का मक बोजन होता है।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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