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________________ . भ. ऋषभनाथका वृत्तांत . [२७१ करता है उसे कारक सम्यक्त्व कहते हैं। वह सम्यक्त्व शम, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा और आस्तिकता इन पाँच लक्षणों से अच्छी तरह पहचाना जाता है। जिसमें अनंतानुबंधी कषाय. का उदय नहीं होता उसे शम कहते हैं; सम्यक् प्रकृतिसे कषायके परिणामोंको देखनेका नाम भी शम है। कर्मके परिणामों और संसारकी असारताका विचार करते हुए विषयों में जो वैराग्य होता है उसको संवेग कहते हैं । संवेगभाववाले पुरुषको, विचार आता है कि संसारका निवास काराग्रह (जेलखाना) है और कुटुंबी बंधन हैं। इस विचारहीको निर्वेद कहते हैं। एकेंद्रिय आदि सभी प्राणियोंको संसारसागरमें डूबनेसे जो दुःख होता है उसे देखकर मनमें जो आद्रता (दया, उनके दुःखसे मनमें जो दुःख) होती है और उसको मिटानेके लिए जो यथाशक्ति प्रवृत्ति की जाती है उसे अनुकंपा कहते हैं। दूसरे तत्त्वोंको सुनते हुए भी आहत् ( अरिहंतके कहे हुए) तत्त्वोंमें जो प्रतिपत्ति ( गौरव या विश्वास ) रहती है उसे आस्तिकता कहते हैं। इस तरह सम्यकदर्शनका वर्णन किया गया है। उसकी प्राप्ति थोड़ी देरके लिए होनेपर भी पूर्वका जो मतिअज्ञान होता है वह नष्ट होकर मतिज्ञानके रूपमें बदल जाता है; श्रुत-अज्ञान होता है वह श्रुतज्ञान हो जाता है और विभंगज्ञान नष्ट होकर अवधिज्ञान हो जाता है । (६०८-६१६) . चारित्र सभी सावघयोगोंको (ऐसे कामोंको जिनसे कोई हिंसा . १-इंद्रियोंका संयम । २-वैराग्य। -भासक्ति रहित । ४-दया
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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