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________________ __२७२ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग ३. हो) छोड़नेका नाम चारित्र है। वह अहिंसादि व्रतोंके भेदसे पाँच प्रकारका है। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ये पाँच व्रत पाँच भावनाओंसे युक्त होनेसे मोक्षके कारण होते हैं। प्रमाद (असावधानी ) के योगसे त्रस और स्थावर जीवोंके प्राणोंको नाश न करना अहिंसावत कहलाता है। प्रिय, हितकारी और सत्य वचन बोलना सुनृत (सत्य) व्रत कहलाता है; अप्रिय और अहितकारी सत्यवचनको भी असत्यके समानही समझना चाहिए। अदत्त (न दी हुई) वस्तुको ग्रहण न करना अस्तेय या अचार्य व्रत कहलाता है। कारण, "बाह्यप्राणा नृणामर्थो हरता तं हृता हि ते।" [धन मनुष्यके बाहरी प्राण हैं इससे जो किसीका धन लेता है वह उसके प्राणही लेता है ] दिव्य (वैक्रिय) और औदारिक शरीरसे अब्रह्मचर्यसेवनका-मन, वचन और कायासे; करने, कराने और अनुमोदन करनेका त्याग करना ब्रह्मचर्यव्रत कहलाता है। इसके अठारह भेद हैं। सभी चीजोंसे मूर्छा (मोह.) का त्याग करना अपरिग्रहवत कहलाता है। कारण, मोहसे न होनेवाली वस्तुमें भी चित्तका विप्लव होता है-(जो बात होनेवाली नहीं है उसके लिए भी मनमें व्याकुलता होती है।) यतिधर्मसेमें अनुरक्त यतींद्रोंके लिए ( इन पाँचों व्रतोंको) सबसे (यानी पूरी तरहसे पालना) श्री गृहस्थोंके लिए देशसे (कुछ छूट रखकर पालना ) चारित्र कहा है। (६२०-६२७) . पाँच अणुव्रत, तीन गुणवत और चार शिक्षाव्रत मिलाकर
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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