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________________ २७० ] त्रिपष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्व १. सर्ग ३. - उत्पन्न होता है वह भी औपशमिक सम्यक्त्व कहा जाता है। सम्यक्त्व भावका त्याग करके मिथ्यात्वकी ओर जानेवाले प्राणीको, अनंतानुबंधी कपायके उदय होनेसे उत्कर्षसे छःप्रावली (समयका एक भाग) तक और जघन्यसे एक समय (समयका एक भाग) तक सम्यक्त्वका परिणाम रहता है, वह सास्वादन सम्यक्त्व कहलाता है। मिथ्यात्व मोहनीके क्षय और उपशमसे जो सम्यक्त्व होता है वह क्षयोपशमिक सम्यक्त्व कहलाता है; यह सम्यक्त्वमोहनीके परिणामवाले प्राणीको होता है। जो क्षपक-भावको प्राप्त हुआ है, जिसकी अनंतानुबंधी कपायकी चौकड़ी क्षय हो गई है,जिसकी मिथ्यात्व मोहनी और सम्यक्त्व मोहनी अच्छी तरह क्षय हो गई है, जो क्षायक सम्यक्त्त्रके सम्मुख हुआ है ऐसे, और सम्यक्त्व मोहनीके अंतिम अंशका भोग करनेवाले प्राणीको वेदक नामका चौथा सम्यक्त्व प्राप्त होता है। सातों प्रकृतियोंको (अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोम, सम्यक्त्व मोहनी, मिश्र मोहनी और मिथ्यात्व मोहनी इन सात प्रकृतियोंको) क्षीण करनेवाले और शुभभावोंवाले प्राणीको क्षायिक नामका पाँचवाँ सम्यक्त्व प्राप्त होता है। (५६६-६०७). सम्यक्त्व गुणसे रोचक, दीपक और कारक तीन प्रकारका है। शास्त्रोक्त(शास्त्रोंमें कहे हुए)तत्त्वमें, हेतु और उदाहरण: __ के बिना जो दृढ़ विश्वास उत्पन्न होता है उसे रोचक सम्यक्त्व कहते हैं। जो दसरेके सम्यक्त्वको प्रदीप्त करता है उसे दीपकसम्यक्त्व कहते हैं और जो संयम तथा तप वगैराको उत्पन्न
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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