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________________ भ० ऋषभनाथका वृत्तांत [२६६ ग्रंथीदेशको प्राप्त होता है। दुःखसे (वहुत कठिनतासे ) भेदे जा सकें ऐसे रागद्वेषके परिणामोंको ग्रंथीदेश कहते हैं। वह ग्रंथी काठकी गाँठकी तरह दुरुच्छेद (बहुत मुशकिलसे कटनेवाली) और बहुत मजबूत होती है। जैसे किनारेपर आया हुआ जहाज वायुके वेगसे वापस समुद्र में चला जाता है वैसेही रागादिकसे प्रेरित कई जीव ग्रंथीको भेदे विनाही ग्रंथीके पाससे लौट जाते हैं। कई जीव, मार्गमें रुकावट आनेसे जैसे सरिताका जल रुक जाता है वैसेही, किसी तरहके परिणाम विशेषके वगैरही वहीं रुक जाते हैं। कई प्राणी, जिनका भविष्यमें भद्र (कल्याण) होनेवाला होता है, अपूर्वकरण द्वारा अपना वल प्रकट करके दुर्भेद्य ग्रंथीको उसी तरह शीघ्रही भेद देते हैं जिस तरह बड़े (कठिन) मार्गको तै करनेवाले मुसाफिर घाटियोंके मार्गको लाँघ जाते हैं। कई चार गतिवाले प्राणी अनिवृत्तिकरण द्वारा अंतरकरण करके मिथ्यात्वको विरल (क्षीण) करके अंतर्मुहूर्तमात्रमें सम्यकदर्शन पाते हैं। यह नैसर्गिक (स्वाभाविक ) सम्यक् श्रद्धान कहलाता है। गुरु-उपदेशके आलवन (सहारे) से भव्यप्राणियोंको जो सम्यक्त्व उत्पन्न होता है वह गुरुके अधिगमसे (उपदेशसे)हुआ सम्यक्त्व कहलाता है । (५८६-५६८) सम्यक्त्वके औपशमिक, सास्वादन, क्षायोपशमिक, वेदक और क्षायिक ऐसे पाँच भेद है। जिसकी कर्मग्रंथी भिद गई है ऐसे प्राणीको, जिस सम्यक्त्वका लाभ प्रथम अंतर्मुहूर्तमात्रके लिए होता है उसे औपशमिक सम्यक्त्व कहते हैं। इसी तरह उपशम श्रेणीके योगसे जिसका मोह शांत हुआ हो ऐसे देही (शरीरधारी आत्मा) को मोहके उपशमसे ( जो सम्यक्त्व)
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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