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________________ भ० ऋषभनाथका वृत्तांत [२६७ होता है, वैसा मोक्षमें कभी भी नहीं होता। कुंभीके बीचमेंसे खींचे जानेवाले नारकी जीवोंकी पीड़ाके समान प्रसववेदना मोक्षमें कभी भी नहीं होती। अंदर और बाहर डाले हुए कीलकाँटोंके समान पीड़ाके कारणरूप आधि-व्याधि मोक्ष में नहीं होती। यमराजकी अग्रदूती, सब तरहके तेजको चुरानेवाली तथा पराधीनता पैदा करनेवाली जरा ( वृद्धावस्था) भी वहाँ बिलकुल नहीं होती। और नारकी, तिर्यंच, मनुष्य और देवताओंकी तरह संसारमें भ्रमण करनेकी कारणरूप मौत भी वहाँ नहीं होती। वहाँ मोक्षमें तो महा आनंद, अद्वैत और अव्यय सुख, शाश्वतरूप और केवलज्ञान-सूर्यसे अखंड ज्योति है। हमेशा ज्ञान, दर्शन और चारित्ररूपी तीन उज्ज्वल रत्नोंको पालनेवाले (धारण करनेवाले) पुरुषही मोक्षको प्राप्त कर सकते हैं । (५५३-५७७) ज्ञान __“जीवादि तत्वोंकासंक्षेपमें या विस्तारसे यथार्थ ज्ञान होता है, उसको सम्यग्ज्ञान कहते हैं। मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल इस क्रमसे ज्ञान पाँच तरहका है। उसमें से जो अवप्रहादिक भेदोंवाला तथा दूसरे बहुग्राही, अबहुग्राही भेदोंवाला और जोइंद्रिय-अनिद्रियसे उत्पन्न होनेवाला ज्ञान है उसे मतिज्ञान कहते हैं। जो पूर्व, अंग, उपांग और प्रकीर्णक सूत्र-प्रथोंसे विस्तार पाया हुआ और स्यात् शब्दसे लांछित(सुशोभित)अनेक प्रकारका ज्ञान है उसे श्रुतज्ञान कहते हैं। जो देवता और नारकी. जीवोंको जन्मसे उत्पन्न होता है उसे अवधिज्ञान कहते हैं। यह
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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