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________________ २६६ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्व १. सर्ग ३. जैसे वृक्ष फलयुक्त होता है वैसेही परलोकका साधन करनेसे मनुष्य-जन्म सफल होता है। इस संसारमें शठ लोगोंकी वाणी जैसे प्रारंभमें मीठी और अंत में कह फल देनेवाली होती है, वैसेही विषय-वासना विश्वको ठगने और दुःख देनेवाली है। बहुत ऊँचाईका परिणाम जैसे गिरना है वैसेही संसारके अंदरके सभी पदार्थों के संयोगका अंत वियोगमें है। इस संसारमें सभी. प्राणियोंके धन, यौवन और श्रायु परस्पर स्पा करते हो ऐसे जल्दी आनेवाले और नाशमान हैं। मरुदेशमें जैसे स्वादिष्ट जल नहीं होता वैसेही, संसारकी चारों गतियों में सुखका लेश भी नहीं होता । क्षेत्र-दोषसे दुश्व पात हुए और परमाधार्मिकों के द्वारा सताए हुप नारकी नीवोंको तो मुग्न होही कसे सकता है ? (यानी उन्हें कभी मुख्न नहीं होता) सरदी, हवा, गरमी और पानी इसी तरह वध, बंधन और भूख इत्यादिसे अनेक तरहकी तकलीफ उठाते हुप नियंचोंको भी क्या मुख है ? गर्भवास, बीमारी,बुढ़ापा, दरिद्रता और मौतसे होनेवाले दुःखमें सने हुए मनुष्योंको भी कहाँ मुख है ? आपसी द्वेष, असहिष्णुता, कलह तथा च्यवन वगैरा दुःखांस देवताओंको भी मुख नहीं मिलता। तो भी जल लेस नीची जमीनकी तरफ बहता है वैसेही प्राणी भी अज्ञानसे बार बार इस संसारद्दीकी तरफ जाते हैं। इसलिए हे चेतनावान (ज्ञानवान) भव्यजनो ! जैसे दूध पिलाकर सर्पका पोपण करते है वही, तुम मनुष्य जन्मसे संसारका पोषण मत करो। हे विक्रियों ! इस संसारमें रहनसे अनेक तरह के दुःख होते है, उन सबका विचार करकं सब तरहसे मुक्ति पाने: का यत्न करो । संसारमं नरकके दुःख जमा, गर्मबासका दुःख
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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