SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 289
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भ० ऋषभनाथका वृत्तांत. [ २६५ यहाँ निर्वैर होकर बैठे हैं। इसका कारण आपका अतुल प्रभाषही है।" ( ५३८-५५२) भरत राजा इस तरह जगत्पतिकी स्तुति करक्रमशः पीछे हट स्वर्गपति इंद्रके पीछे जा बैठे। तीर्थनाथके प्रभावसे उस योजनमात्र जगहमें करोड़ों प्राणी किसी तरहकी तकलीफके बगैर वैठे हुए थे। भगवानकी देशना उस समय सभी भाषाओंको स्पर्श करनेवाली, पैंतीस अतिशयोंवाली और योजनगामिनी वाणीसे प्रभुने इस तरह देशना ( उपदेश) देनी शुरू की- "आधि, व्याधि, जरा और मृत्युरूपी सैंकड़ों ज्वालाओंसे भरा हुआ यह संसार सभी प्राणियों के लिए दहकती हुई आगके समान है। इसलिए विद्वानोंको ( समझदारोंको ) थोड़ासा प्रमाद भी नहीं करना चाहिए; कारण, रातहीके वक्त मुसाफिरी करने लायक मरुदेशमें कौन ऐसा अज्ञानी होगा जो प्रमाद करेगा ? (मुसाफिरी न करेगा ?) अनेक योनिरूपी आवतों (भँवरों) से क्षुब्ध बने हुए संसाररूपी. समुद्र में भटकते हुए प्राणियोंको उत्तम रत्नकी तरह इस मनुष्यजन्मका प्राप्त होना दुर्लभ है। दोहद' पूर्ण होनेसे . १-किंवदंति है कि-पहले कई फलदार वृक्ष ऐसे होते थे, जो बड़े होनेपर भी तबतक नहीं फलते थे जब तक उनके तनेमें किसी ऐसी स्त्रीका पर नहीं लगता था जिसकी पहली संतान पुत्र हो; और जिसको प्रसववेदना अधिक नहीं हुई हो। इसी वातको वृक्षका दोहदपूर्ण होना कहा जाता था।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy