SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५० ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग ३. शिखर हों ऐसे छ, कुछ देदे, बड़े और ऊँचे पाट पाठ दाँत उसके हरेक मुँहमें शोमत थे। उसके हरेक दाँतपर स्वादिष्ट (जायकेदार) और माफ जालवाली एक एक पुष्करिणी (बावड़ी) थी। वह हरेक वर्षवर' नामक पर्वतपरके नह (गहरी नाल) के समान शोमती थी। हरेक पुष्करिणी में श्राठ आठ कमल थे; वे ऐसे मालूम होते थे मानों जलदेवियोंन जलसे बाहर मुँह निकाने हैं। हरेक कमलम पाठ पाठबई पत्य वापसे शोमत थे मानों क्रीडा करती हुई देवांगनायोंकि विश्राम करने के लिए द्वीप (दापू ) हो । हरेक पत्रपर चार तरह के अमिनयोंसे युक्त अलग अलग पाठ नाटक हो रहे थे और हरेक नाटकम, मानों इसके ऋल्लोलकी संपत्तिवाले मारने हा पसे बत्तीस पात्र (नाटक करनेवाले) ! पेले उत्तम गनेंद्रपर अगले थामनपर इंद्र सपरिवार बैठा। हाथीले छुमन्यत्तसे उसकी नाक ढक गई। हाथी, इंद्रको उसके परिवार सहित वहाँम लेकर चला; वह ऐसा मालूम होता था, मानों संपूर्ण सौधर्म देवलोक चलरहा है। क्रमश: अपने शरीरको छोटा बनाता हुया, मानों पालक विमान हो मेसे-वठ्ठ हाथी क्षणमात्र में उन बगीचे में जा पहुँचा, जिसको भगवानने पवित्र किया था । दुसर अच्युत वगैरा इंद्र. मी, मैं पहले पहुँ। मैं पइने पहुँचूँ यो मोबने हुए अनि शीघ्र देवताओं सहित वहाँ श्रा पहुँचे । (१००-१२२) समवसरण उस समय वायुकुमार देवनबद्दप्यनको छोड़, समवसरण लिए एक योजन पृथ्वी माफ की मेयच्चमार देवताओंन मुर्गचित
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy