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________________ भ० ऋपभनाथका वृत्तांत २५३ - जलकी वर्षा कर पृथ्वीपर छिड़काव किया; उससे ऐसा मालूम हुआ मानो प्रभुके आनेकी वात जानकर पृथ्वीने सुगंधित आँसु ओंसे धूप और अर्घ्य उत्तिप्त किया है-फेंका है। व्यंतर देवताओं ने भक्तिसहित अपनी आत्माके समान उच्च किरणोंवाले, सोने, माणिक और रत्नोंके पत्थरोंका फर्श बनाया। उसपर खुशबूदार पाँच रंगोंके फूल-जिनके वृत (वोंड़ी) नीचेकी तरफ थे-फैला दिए; वे ऐसे जान पड़ते थे मानो जमीनमेंसे निकले हैं। चारों दिशाओंमें उन्होंने रत्नों, माणिकों और सोनेके तोरण याँधे, वे उनकी कठियोंके समान मालूम होते थे। वहाँपर खड़ी कीगई रत्नादिककी पुतलियोंसे निकलते हुए प्रतिविव एक दूसरी पुतलीपर गिरते थे, वे ऐसे मालूम होतेथे मानो सखियाँ आपसमें गले मिल रही हैं। स्निग्ध इंद्रनीलमणियोंसे गढ़े हुए मगरोंके चित्र, नष्ट हुए कामदेवके छोड़े हुए अपने चिह्नरूपी मगरोंका भ्रम पैदा करते थे। वहाँ सफेद छत्र ऐसे शोभ रहे थे मानों वे भगवानके केवलज्ञानसे पैदा हुई दिशाओंकी प्रसन्नताकी हँसी है। ध्वजाएँ फर्रा रही थीं,वे ऐसे मालूम होती थीं मानो भूमिनेबड़े आनंदसे नाचनेके लिए अपने हाथ ऊँचे किए हैं। तोरणों के नीचे स्वस्तिकादि अष्टमंगलोंके चिह्न वनाए गए थे, वे बलि-पट्ट(पूजाके लिए वनाई गई वेदी) के समान मालूम होते थे। वैमानिक देवताओंने समवसरणके अपरके भागका प्रथम गढ़ रत्नोंका बनाया था वह ऐसा मालूम होता था मानो रत्नगिरिकी रत्नमय मेखला वहाँ लाई गई है। उस गढ़. पर मणियोंके कंगूरे बनाए गए थे, वे अपनी किरणोंसे आकाशको विचित्र रंगोंके वस्त्रोंवाला बनाते हुएसे आन पड़ते थे।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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