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________________ ..... भ. ऋपभनाथका वृत्तांत . [२३६ भौंरेका भ्रम पैदा करनेवाले अपने केशोंसे उसने (प्रभुके चरणोंको)मार्जन किया-उनके चरणोंकी धूल पोंछ डाली। उसने उठकर जगत्पतिको तीन प्रदक्षिणा दो और पुनः श्रानंदके आँसू भरे नेत्रोंसे उनके चरणों में नमन किया। गिरते हुए आँसूऐसे मालूम होते थे मानो वे प्रभुके चरणोंको धो रहे हैं। फिर वह खड़ा होकर प्रभुके मुख-कमलको इस तरह देखने लगा जैसे पूनोंके चाँदको चकोर देखता है। मैंने ऐसा वेप पहले भी कहीं देखा है। इस तरह सोचते हुए उसको विवेक-वृक्षके वीजके समान जातिस्मरणज्ञान (जिससे बीते जन्मोंकी बातें याद आजाएँ ऐसा ज्ञान)उत्पन्न हुआ। इससे उसने जाना कि किसी पूर्व जन्ममें, पूर्व विदेह क्षेत्रमें जब भगवान वज्वनाम नामके चक्रवर्ती थे तब मैं उनका सारथी था। उसी भवमें स्वामीके वनसेन नामके पिता थे। उनको मैंने ऐसे तीर्थंकरोंके जिह्नवाला देखा था । वजनाभने वनसेन तीर्थकरके चरणोंके पास बैठकर दीक्षा ली थी; तब मैंने भी उनके साथ ही दीक्षा ली थी। उस समय वनसेन अरिहंतके मुखसे मैंने सुना था कि यह वजनाभ भरतखंडमें पहले तीर्थंकर होंगे। स्वयंप्रभादिके भवमें भी मैं इन्हींके साथ रहा हूँ। वे इस समय मेरे प्रपितामह (परदादा) हैं। इनको भले भागसे आज मैंने देखा है। ये प्रभु,साक्षात मोक्ष हों इस तरह सारी दुनियापर और मुझपर कृपा करनेके लिए यहाँ पधारे हैं।" .. कुमार इस तरह सोच रहा था, उसी समय किसीने आनंदके साथ आकर नवीन इक्षुरस (गन्ने के रस ) से पूरे भरे हुए घड़े श्रेयांसकुंमारको भेट किए । ( जांतिस्मरण ज्ञानसे) निर्दोष भिक्षा देनेकी विधिको जाननेवाले कुमारने प्रभुसे प्रार्थना
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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