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________________ २३८ ] त्रिपष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग ३. - जिन्होंने भरतादि बगैरहको और आपको भी अपने शेप (बचे हुए अन्नं ) की तरह यह भूमि दी है और जिन्होंने सभी सावंद्य वस्तुओंका त्याग कर, आठ कर्मरूपी महापंक(कीचड़) को सुखाने के लिए, गरमीकी धूपके समान, तपको स्वीकार किया है, वे ऋपभदेव प्रभु ममता-रहित, भूखे-प्यासे, अपने पादसंचारसे (चलनेसे) पृथ्वीको पवित्र करते फिरते हैं । वे न सूरजकी गरमीसे घबराते हैं और न छायासे खुश होते हैं; वे पर्वतकी तरह दोनोंमें समान भाव रखते हैं । वे वनकी कायावालेकी तरह न सरदीमें विरक्त होते हैं और न गरमीमें आसक्तही होते हैं । वे जहाँ तहाँ रहते हैं । संसाररूपी हाथीके लिए केसरी-सिंहके समान वे प्रभु युगमात्र प्रमाणसे (चार हाथ आगे) नजर रखते हए. एक चींटीको भी तकलीफ न हो इस तरह कदम रखकर चलते हैं। प्रत्यक्ष (आपको ) निर्देश (आना) करने लायक और तीन लोकके देव आपके दादा भले भाग्यसे यहाँ आए हैं । गवालेके पीछे जैसे गौएँ दौड़ती हैं वैसेही, प्रभुके पीछे दौड़नेवाले नगरनिवासियोंका ग्रह मधुर कोलाहल है।" ( २६७-२७६) स्वामीका आना सुनकर युवराज श्रेयांस तुरत पैदल चलनेवालोंको भी पीछे छोड़ता हुआ (पांव-प्यादे)ही दौड़ पड़ा। युवराजको छत्र और उपानह (जूतों ) रहित दौड़ते देखकर उसकी सभांके लोग भी, अपने छत्र और उपानह छोड़कर छायाके समान उसके पीछे दौड़ चले। जल्दी जल्दी दौड़नेसे उसके कानोंके कुंडल हिलते थे, उससे ऐसा मालूम होता था मानों युवराज पुन: स्वामीके सामने वाललीला कर रहा है। अपने घरके आंगनमें प्रभुको आए देख, वह प्रमुके चरणकमलामें लोटने लगा और
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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