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________________ २४० ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्र: पर्व १. सर्ग ३. की, "हे भगवान ! यह कल्पनीय (दोप रहित, ग्रहण करने लायक) रस स्वीकार कीजिए।" प्रमुने अंजली कर हस्तरूपी पात्र उसके सामने किया । कुमारने गन्नेके रससे भरे घड़े उठा उठाकर प्रभुक्री अंजली में उंडेलना प्रारंभ किए। प्रभुकी अंजली में बहुतसा रस समा गया; मगर कुमारके हृदय में उतना आनंद नहीं समाया (उसे संतोष नहीं हुया)। स्वामीकी श्रनलीम रस इस तरह स्थिर होगया मानां उसकी शिखा आकाशमें लगी हुई होनेसे वह जम गया हो । कारण,तीर्थंकरोंका प्रभाव अचिंत्य है। प्रभुने उस रससे (एक बरसके उपवासोंका )पारणा किया, और सुर, अमुर व मनुष्योंकी आँखोंने उनके दर्शनरूपी अमृतसे पारणा किया। उस समय श्रेयांसके कल्याणकी प्रसिद्धि करनेवाले चारण ही ऐसे आकाशमें प्रतिबनिसें वृद्धि पाए हुए दुंदुमि जोरसे बजने लगे। मनुष्योंकी आँखोंसे गिरनेवाले श्रानंदके आँसुयोंके साथ साथ देवताओंने अाकाशसे रत्नोंका मेह घरसाया । मानो प्रमुके चरणोंसे पवित्र बनी हुई पृथ्वीको पूतना हो इस तरह देवता वहाँ पाँच रंग फूलोंका मेह बरसाने लगे। देवताओंने सभी फूलोंके समूहसे संचय किए हो.वैसे, गंधोदक की वृष्टि की। और मानो आकाशको विचित्र बादलोंवाला बनाते हों वैसे देवता और मनुष्य उजले कपड़े डालने लगे। (तीर्थकरोंको आहार देनेसे ये पाँच दीव्य प्रकट होते हैं। ) वैशाख सुदी तीजको दिया हुआ वह दान अक्षय हुआ। इसीलिए वह दिन अक्षय तृतीयाके नामसे बाज भी प्रचलित है। जगतम दानधर्म श्रेयांसकुमारसे प्रारंभ हुआ और दूसरं सभी व्यवहार भगवान ऋषभदेवसे प्रारंभ हुए। (२७७-३०२) ..
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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