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________________ भ० ऋषभनाथका वृत्तांत [२३७ कोई बोला, "मेरे सूरजके घोड़ेके समान घोड़ेको स्वीकार कीजिए। आतिथ्य (मेहमानवाजी) स्वीकार न कर हमको अयोग्य क्यों बनाते हैं ?" कोई बोला, "इस रथमें उत्तम जातिके घोड़े जुने हुए है। आप इसको स्वीकार कीजिए। अगर आप इसमें सवार नहीं होते हैं तो फिर ये रथ हमारे किस कामका है ?" कोई बोला, "हे प्रभु ! आप इन पके फलोंको अंगीकार कीजिए। आपको सेवकोंका अपमान नहीं करना चाहिए।" किसीने कहा, "हे एकांतवत्सल ! इस तांबूलकी घेलके पत्र प्रसन्न होकर ग्रहण कीजिए।" किसीने कहा, "हे स्वामी! हम लोगोंने क्या अपराध किया है कि जिसके सबबसे श्राप, सुनही न सकते हो इस तरह. कुछ बोलते भी नहीं हैं।" इस तरह लोग उनसे प्रार्थना करते थेमगर वे किसी चीजको भी लेने लायक न समझ, स्वीकार न करते थे और चाँद जैसे तारे तारे पर फिरता है वैसे वे घर घर फिरते थे। सवेरे जैसे पखियोंका कोलाहल सुनाई देता है सेही नगरनिवासियोंका कोलाहल अपने भवनमें बैठे हुए श्रेयांसकुमारने सुना। उसने कोलाहल क्यों हो रहा है सो जानने के लिए छड़ीवारको भेजा। छड़ीदार गया, सारी बातें जानकर वापस आया और हाथ जोड़कर इस तरह कहने लगा,- (२५१-२६६) "राजाओंकी तरह अपने मुकुटोसे जमीनको लकर पादपीट (पैर रखनेकी चौफी ) के सामने लोटते हुए द्रादि देव हद भनिसे जिनकी सेवा करते हैं मुरज जैसे चीजको बताना सही जिन्होंने इमलोक दया करके सयलोगोको उनकी प्राली. विका मापनप काम बना है। दीक्षा लेने नदा फरक
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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