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________________ १७४ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग २. इधर सबेरे स्वामिनी ममदेवी माता जागी । उनने रातमें देवता. ओंके यानेजानेकी, रावकं सपनेकी तरह, सारी बातें कहीं। जगस्पतिके उमपर ऋषभका चिह्र था और मनदेवी माताने भी सप. नोंमें सबसे पहले ऋपम देखा था इसलिए हर्पित मातापिताने शुम दिन देखकर उत्साह के साथ प्रभुका नाम ऋषम रखा । उनके साथही, युगल रूपमें जन्मी हुई कन्याका नाम सुमंगला रखा। यह नाम यथार्थ और पवित्र था। जैसे वृक्ष खेतों की कुल्याओं का (पानीकी नालियोंका) जल पीते है सही पम स्वामी भी, इंद्रके द्वारा अंगूठेमें भरद्वप अमृतका योग्य समयपर पान करने लगे। जैसे पर्वतकी गोद (गुफा में बैठे सिंहका किशोर. शोभता है, वैसेही पिताकी गोदमें बैठे हुए बालक भगवान शोमने लगे। जैसे पाँच समितियाँ महामुनिको नहीं छोड़ती हैं, वैसेही इंद्रकी रखी हुई पाँच दाइयाँ प्रभुको कभी भी अकेला नहीं छोड़ती थीं। (६४७-६५३) लय प्रमुके जन्मको एक साल होने पाया तब सौधर्मेंद्र वंशकी स्थापना करनेके लिए वहाँ (अयोध्या में पाया । सेवकको कमी खाली हाथ स्वामीके पास नहीं जाना चाहिए, इस विचारसे इंद्र एक बड़ा गन्ना अपने साथ लाया। शरीरधारी शरदऋतु के समान सुशोभित इंद्र गन्ने सहित वहाँ आया जहाँ प्रमु नामिरानाकी गोदमें बैठे हुए थे। प्रभुने अवधिनानके द्वारा इंद्रका इरादा लान, हाथीकी (गुंडकी ) तरह अपना हाथ गमा लेनेको लंवा किया स्वामीका भाव नाननेवाले इंद्रने सर मुकाकर गन्ना मेंटकी तरह प्रभुको दे दिया। प्रमुने इक्षु (गमा)
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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