SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सागरचंद्रका. वृत्तांत : [१७३ ईशानेंद्र उत्तर दिशाके नित्य रमणीक ऐसे रमणीय नामके अंजनगिरिपर उतरा और उसने उस पर्वतपरके चैत्यमें ऊपरकी तरह ही शाश्वती प्रतिमाएँ हैं, उनकी अष्टाहि. उत्सवपूर्वक पूजा की। उसके दिक्पालोंने भी उस पर्वतके चारों तरफकी बावड़ियोंके दधिमुख पर्वतोपरके चैत्योंमें विराजमान शाश्वत प्रतिमाओंकी पूजा की। (६३७-६३६) चमरेंद्र दक्षिण दिशाके नित्योद्योत नामके अंजनाद्रि पर उत्तरा । रत्नोंसे नित्य प्रकाशमान उस पर्वतपरके चैत्योंमें विराजमान शाश्वत प्रतिमाओंकी उसने बड़ी भक्तिके साथ, अष्टाहिका महोत्सव सहित पूजा की। और उस पर्वतके चारों तरफ की बावड़ियोंके दधिमुख पर्वतोपरके चैत्योंमें विराजमान प्रतिमाओंकी अचलचित्तसे उत्सबके साथ चमरेंद्रके चार लोकपालोंने पूजा की। (६४०-६४२) - बलि नामका इंद्र पश्चिम दिशाके स्वयंप्रभ नामके अंजन. गिरिपर, मेघके समान प्रभावके साथ उतरा । उसने उस पर्वतके चैत्योंमें विराजमान देवताओंकी आँखोंको पवित्र करनेवाली, शाश्वती ऋषभादि अहंतोंकी प्रतिमाओंका उत्सव किया। उसके चार लोकपालोंसे भी उस अंजनगिरिके चारों तरफकी दिशाओंकी बावड़ियोंके अंदर दधिमुख नामक पर्वतोपरके चैत्योंमें विराजमान शाश्वती जिनप्रतिमाओंका उत्सव किया। (६४३-६४५). इस तरह सभी देव नंदीश्वरद्वीपपर उत्सव करके मुसाफिरोकी तरह जैसे आए थे वैसेही अपने अपने स्थानोंपर गए। . (६४६)
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy