SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . .. सागरचंद्रका वृत्तांत . [१६१ शब्दोंसे गूंजते हुए, कमल थे. जो ऐसे मालूम होते थे मानों थे भगवानके प्रथम स्नात्रमंगलका पाठ पढ़ रहे हों । कलश ऐसे मालूम होते थे मानों वे पातालकलश हैं और स्वामीको स्नान करानेकेलिए पातालसे वहाँ पाए हैं। अपने सामानिक देवता ओंके साथ अच्युतेंद्रने एकहजारआठ कलश इस तरह उठाए मानों वे उसकी संपत्तिके फल थे । ऊँची उठाई हुई भुजाओंके अग्रभागमें (हाथोंमें ) कुंभ, नालें ( कमलकी डंडियाँ) जिनके ऊपर की गई हों ऐसे कमलकोशोंकी विडंबना (परिहास) करते से मालूम होते थे; अर्थात उनसे भी अधिक सुंदर लगते थे । फिर अच्युतेंद्रने अपने मस्तककी तरह कलशको जरा झुकाकर जगत्पतिको स्नान कराना प्रारंभ किया। उस समय कईएक देवोंने,गुफाओंमें होते हुए शब्दोंकी प्रतिध्वनिसे मेरुपर्वतको वाचाल करते हों वैसे, आनक नामक मृदंग बजाने प्रारंभ किए । भक्तिमें तत्पर कई देव, सागरमंथनकी ध्वनिको चुरानेवाली दुदुभियाँ बजाने लगे। कई देव भक्तिमें मस्त होकर, पवन जैसे आकुल ध्वनिवाले प्रवाहकी तरंगोंको टकराता है वैसे,माँझ बजाने लगे। कई देवता, मानों ऊर्ध्वलोकमें जिनेन्द्रकी आज्ञाका विस्तार करती हो वैसी ऊँचे मुँहवाली भेरियाँ उचस्वरसे बजाने लगे। कई देवता, मेरुपर्वतके शिखरपर खड़े होकर, गवाल लोग जैसे सींगियाँ बजाते हैं वैसे ऊँची आवाजबाले काहल नामक बाजे बजाने लगे। कई देव उद्घोष(भगवानके जन्माभिषेककी घोपणा)करनेके लिए, जैसे दुष्ट शिष्योंको हाथोंसे पीटते हैं वैसे, मुरज नामक बाजेको अपने हाथोंसे पीटने लगे। कई देवता वहाँ आए हुए असंख्य
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy