SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६० ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १.सर्ग२. हो वैसे, उन्होंने दूसरे वर्षधर पर्वतपरकी महीला से पद्म आदि लिए।समी क्षेत्रों से वनान्यपरसे और दूसर विजयाँ(प्रांतों मेसे अतृप्रदेवोंने स्वामी प्रसादकी तरह जल और क्रमललिए। वक्षार नामक पर्वतसे उन्होंन, दूसरी पवित्र और मुगंधित चीजें इस लिए जमा करके वहाँ रस्त्री हुई थीं। पालसरहिन उन देवाने देवकुन और उत्तरकुन क्षेत्रोंके नहाँके (तालाबोंके) जलसे कलशों को इस तरह भरा मानों श्रेय (मंगल-कल्याण ) से अपनी आत्माओंकोही भरा हो । भद्रशाल, नंदन, और पांडुक बनमसे उन्होंने गोशीर्ष चंदन वगैरा चीजें ली। इस तरह गंधकार जिस तरह सभी मुगंधित द्रव्योंको एकत्र करता है, वैसे सुगंधित चीजें और जल एकत्रित करके तत्काल ही मेरुपर्वतपर पाए । (४५२-९३) अब दस हजार सामानिक देवास, चालीस हजार प्रात्मरनक देवोंसे, तेतीस त्रायन्त्रिंशत देवास, तीन सभाओंके सभी देवासे, चार लोकपालॉस, सात बड़ी सेनाओंसे और सेनापतियोसे परखरा हुवा-यानी ये जिसके साथ है ऐसा-यारणाच्युत देवलोकका इंद्र पवित्र होकर भगवानको स्नान कराने के लिए तैयार हुआ। पहले उस अच्युतंद्रन उत्तरासंग (उत्तरीय-दुपट्टा) धारणकर नि:संग (निवार्य, मन्तिसे खिलेहुए पारिजात यादि फूल, अंजलिमें (मिलहम दोनों हाथीम) ले, सुगंधित धूपके घुरसे धूपित कर, नीनलोक नाथके सामने रखा। तब देवानं, भगवानके निकट पहुँचनेके श्रानंदन मानों हमरहे हों ऐसे और पुष्पमालाराने लिपट हुए, मुगंधित जलकं कलशोंको लाकर वहाँ रखा। उन पानीक पलशॉक मुखभागपरमवगेक
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy