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________________ १३० ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग २. हाकार' नीतिसे और अधिक अपराधबालेको 'माकार' नीतिसे और उससे अधिक अपराधबालेको दोनों नीतियोंसे दंड देने लगा । ( १७६-१७६) चौथा कुलकर अमिचंद्र ___ यशस्त्री मुल्पाकी आयु जब थोड़ी बाकी रही तब उनके एक युगलिया इस तरह जन्मा जिस तरह विनय और बुद्धि एक साथ जन्मते हैं। मातापिताने पुत्रका नाम अमिचंद रखा कारण वह चंद्रमाके समान उजला था और पुत्रीका नाम प्रतिरूपा रखा कारण वह प्रियंगुलता (राईकी बेल) की प्रतिरूपा (समान) थी। वे अपने माँवापसे कुछ कम आयुवाले और साइछहसौ घनुप ऊँचे शरीरवाले थे। एक जगह मिले हुए शमी और पीपल के पेड़ों की तरह वे एक साथ बढ़ने लगे। गंगा और यमुनाके पवित्र प्रवाहके मिन्ने हुए नलकी तरह वे दोनों निरंतर शोमने लगे। (१८०-१८३) आयु पूर्ण होनेपर यशस्वी उदधिकुमार और सुरूपा उसके सायही मरकर, नागकुमार भुवनपति देव-निकायमें उत्पन्न हुए। (१४) श्रमिचंद्र भी अपने पिताहीकी तरह, उसी स्थिति और पन्हीं दोनों नीतियोंके द्वारा युगलियाँको दंड देने लगा ।(१८५) ___पाँचत्रा कुलकर प्रसेनजित .. अंतिम अवस्था में प्रतिरूपाने एक लोईंकोइसी तरह जन्म दिया जिसतरहबहुत प्राशियोंके चाहनपर गावचंद्रमाकोजन्मदेती है। मातापिताने पुत्रका नाम प्रसेनलित रखा और पुत्री सचक्र
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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