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________________ सागरचंद्रका वृत्तांत [१२६ - वहाँसे वह हाथी भी अपनी आयु पूर्णकर नागकुमारदेव हुआ। कालका महात्म्यही ऐसा है। (१७०) . . अपने पिता विमलवाहनकी तरह चक्षुष्मान भी 'हाकार' नीतिहीसे युगलियोंकी मर्यादाओंको चलाता रहा । (१७१) तीसरा कुलकर यशस्वी अंत समय निकट आया तब चक्षुष्मानकी चंद्रकांतासे यशस्वी और सुरूपा नामका युगलधर्मी जोड़ा पैदा हुआ। दूसरे कुलकरके समानही उनके संहनन और संस्थान थे। उनकी आयु कुछ कम थी। आयु और बुद्धिकी तरह वे दोनों क्रमशः बढ़ने लगे। साढ़ेसातसौ धनुप ऊँचे शरीर-परिमाण (नाप) वाले वे साथ साथ फिरते थे जो तोरणके खंभोंकी भ्रांति पैदा करते थेतोरण के खंभोंके समान लगते थे। (१७२-२७४) . आयु पूर्ण होनेपर मरकर चक्षुष्मान सुवर्णकुमारमें और चंद्रकांता नागकुमारमें उत्पन्न हुए । (१७५) यशस्वी कुलकर अपने पिताहीकी तरह, गवाल जैसे गायोंका पालन करता है उसी तरह, युगलियोंका लीलासे (सरलतासे) पालन करने लगा। मगर उसके समयमें युगलिए 'हाकार' दंडका क्रमशः इस तरह उल्लंघन करने लगे जिस तरह मदमाते हाथी अंकुशको नहीं मानते हैं । तव यशस्वीने उनको 'माकार' __दंडसे सजा देना शुरू किया। कारण-- "रोगे त्वेकौपधासाध्ये देयमेवौषधांतरम् ।" [अगर एक दवासे बीमारी अच्छी न हो तो दूसरी दवा _देनी चाहिए। वह महामति यशस्वी थोड़े अपरांधवालेको -
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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