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________________ सागरचंद्रका वृत्तांत । १३१ चक्षुओंको (आँखोंको) मनोहर लगती थी इसलिए उसका नाम चक्षु-कांता रखा। वे दोनों अपने मातापितासे कम आयुवाले, तमालवृक्षके समान श्यामकांतिवाले बुद्धि और उत्साहकी तरह एक साथ बढ़नेवाले, छहसौ धनुप प्रमाण शरीरकी ऊँचाईवाले, और विपुवंत कालके समान जैसे दिन और रात समान होते हैं उसी तरह, समान प्रभावाले थे। (१८६-१८६) मरकर अभयकुमार उदधिकुमारमें और प्रतिरूपा नागकुमारमें (भुवनपति देव निकायमें) उत्पन्न हुए। ( १६० ) प्रसेनजित भी सव युगलियोंका राजा हुआ । कारण"प्रायो महात्मनां पुत्राः स्युर्महात्मान एव हि ।" .. [प्राय: (अकसर)महात्माओंके लड़के महात्माही होते हैं। कामात लोग जैसे लाज और मर्यादा नहीं मानते वैसेही उस समयके युगलिए 'हाकार' और मांकार'दंडनीतिकी उपेक्षा करने लगे। तब प्रसेनजित, अनाचाररूपी महाभूतको त्रास करने में (भूतको ठीक करनेमें ) मंत्राक्षरके समान, तीसरी 'धिकार' नीतिका उपयोग करने लगे। प्रयोग करनेमें कुशल वह प्रसेनजित, (महावत) तीन अंकुशोंसे (तीन फलोंवाले अंकुशसे) जैसे हाथीको वशमें करता है, वैसेही वह तीन नीतियोंके ('हाकार' 'माकार'और 'धिकार)दंड द्वारा सभी युगलियोंको दंड देने लगाअपने वशमें रखने लगा । (१६१-१६४) ..१~सूर्य जब तुला और मेष राशिमें आता है तब विपुवतं काल होता है।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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