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________________ पाठवाँ भघ-धनसेठ [९७ सूरज अग्रणी ( मुख्य ) होता है वैसेही सभी वैद्योंमें वह, ज्ञानवान और निर्दाप विद्याओंका जाननेवाला, अग्रणी हुआ। वे छहों मित्र सहोदरकी तरह निरंतर साथ साथ रहते थे और एक दूसरेके घर जमा होते थे। (७२६-७३१) एक दिन वे वैद्यपुत्र जीवानंद के घर बैठे थे, उस समय एक मुनि महाराज बहोरनेको आए। वे साधु पृथ्वीपाल राजाके गुणाकर नामक पुत्र थे। और उन्होंने मलकी तरह राज्य छोड़कर शमसाम्राज्य-दीक्षा ली थी। गरमीके मौसमसे जैसे नदी सूख जाती है उसी तरह तपसे उनका शरीर सूख गया था। समय और अपथ्य भोजन करनेसे उनको कृमिकुष्ट (ऐसा कोढ़ जिसमें कीड़े पैदा होजाते हैं) नामका रोग होगया था। सारे शरीरमें रोग फैल गया था, तो भी उन महात्माने कभी दवा नहीं मांगी थी। कहा है ......... कायानपेक्षा हि मुमुक्षवः ।" [मुमुक्षु ( मोलकी इच्छा रखनेवाले ) कभी शरीरकी परवाह नहीं करते। ] (७३२-७३५) गोमूत्रिका विधानसे घर घर फिरते साधुको, छट्टके १. साधु जब श्राहारपानी लेने जाते हैं तय में इस तरह एस परसे दूसरे पर जाते हैं से चल पेशाव करता है। पांत ने माप सिलसिलेवार घरों में प्राधार लेने नहीं जाते। फारम मिसिलेवार जानेसे, संभव है कि प्रगल परगाले साधुके लिए गुरु संगार गर लें। इसलिए ये दाहिने हामी शेगा, परसे पाई बामशकिगी परले जाते और साई की गरमे दाहिने हाके किसी परमें सातेहा
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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