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________________ .८६] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्र: पर्व १. सर्ग १. शीलपुंजके समान गुणाकर नामका पुत्र हुश्रा । दाइयोंके द्वारा प्रयत्न महिन पालिन और रक्षित चागं बालक समानम्.पसे इस तरह बढ़ने लगे जैसे शरीरक सभी अंगोपांग एकसाथ बढ़ने हैं। सदा एक साथ बलतं कुदते हुए उन्होंने सारी कला, हम नरह ग्रहण की जिस तरह वृक्ष मेवका जल एक साथ समानरूपस ग्रहण करते हैं। (७२८-७२६) श्रीमतीका जीव भी देवलोकसे च्यवकर उसी शहरम ईश्वरदत्त सेठके घर पुत्ररूपमें पैदा हुया । नाम केशव रन्या गया । पाँच इंद्रियाँ और छठे मनकी तरह, व छ: मित्र हुए और प्रायः दिनभर वे एक साथ रहते थे। (७२४-७२८) उनमसे मुविधि वैद्यका पुत्र जीवानंद श्रीपधि और रसवीर्यक विपाक अपने पिता सीखकर अष्टांग अायुर्वेदका जाननेवाला हुवा। हाथियोंमें जैसे ऐरावत और नवग्रहोंमें जैसे १-अायुर्वेद के श्राट अंग ये है-१-शल्य-इममें चीरफाड़ सम्बन्धी ज्ञान होता है । अंगरेजी में इसे मनरी (Surgery ) कहते हैं। ३-गानाक्य-यायुर्वेदोक्त शल्यचिकित्सा मंबंधी एक शात्रानंत्र निममें गर्दनक कपरकी इन्द्रियोंकी चिकित्साका वर्णन है । ३-काय चिकित्मा-हसमें मृबीगठ्यापी गंगोंकी चिकित्सा दी गई, है। ४-मूविद्या-हममें पिशाच यादिकी बाधा उत्पन्न रोगका इलान बताया गया है। ५.-कीमारपत्य इनमें बालककी चिकित्सा का वर्णन है 1.-अगदतंत्र-इसमें पांदिकके देशकी चिकिल्ला बनाई गई है। मायन-इसमें नगन्याधिनायक चिकिता बताई गई है। -बाजीकरणा-कामोद्दीपन औपत्र और उसका प्रयोग।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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