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________________ [७१ साधारण धर्म] है। 'कर्म दुःखरूप है। इस प्रकार शरीरक्लेशके भयसे जो कर्मका त्याग किया जाय, ऐसा पुरुष राजसिक-त्याग करके त्यागके फलको प्राप्त नहीं होता । हे अर्जुन ! स्वधर्मानुसार नियत किये गये कर्माको जो पुरुष करना योग्य है। इस मावसे फल व प्रासक्तिको छोड़ कर करता है, वह सात्त्विक त्याग कहा गया है। उपर्युक्त तीनों लोकोंमें गुणभेदसे त्यागके तीन भेद किये गये हैं, जिनमेंसे मोह-अज्ञानपूर्वक त्यागको 'तामस' और कायको शके भयसे दुःखरूप मानकर किये हुए त्यागको राजस' कहा गया है और दोनों ही निन्दित कहे गये हैं। केवल सात्त्विकत्यागको आदर दिया गया है और उसका यह लक्षण किया गया है कि आसक्ति व फलाशाको त्यागकर नो नियंत कर्म (स्वधर्मानुसार) किया जाय, वह ही 'सात्त्विकत्याग है। अब देखना यह है कि नियत कर्मका क्या अर्थ है। 'ब्राह्मणका जो नियत-कर्म है वह उससे भिन्न है जो क्षत्रियका है और क्षत्रियका नियत-कर्म वैश्य व शूद्रसे भिन्न है । एक वर्णका नियत-कर्म दूसरे वर्णके लिये अनियत-कर्म बन जाता है। इसी प्रकार ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यासीमेंसे प्रत्येक आश्रमका जो अपनाअपना नियंत-कर्म है, वह अन्य आश्रमके लिये अनियत-कर्म अवश्य सिद्ध होगा। इतना ही नहीं, बल्कि प्रत्येक वर्ण व प्रत्येक आश्रममें व्यक्तिभेदसे प्रत्येक व्यक्तिके चित्तके अधिकारानुसार गुणतारतम्यसे नियत-कर्म भिन्न-भिन्न होगा। जिसके चित्तमे तमोगुण प्रधान है, उसके लिये वह चेष्टाएँ जो तमोगुण निवृत्त करके रजोगुणको प्रकट करनेवाली होंगी, नियत-कर्म' कहला सकती हैं। जिसके चित्तमें रजोगुएकी प्रधानता है, उसके लिये वह चेष्टाएँ जो रजोगुण घटाकर सत्त्वगुणका उद्बोध करनेवाली हों नियत-कर्म हो सकती हैं । रजोगुणस प्रवृत्ति औरसत्त्वगुणसे
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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