SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०] [आत्मविलास ज्ञान-योगसे भिन्न और जितने प्रकारके योग कहे गये हैं, वे सब कर्म-योगमें गणना करने योग्य हैं, क्योंकि वे सब या तो शारीरिक क्रियारूप हैं या मानसिक-क्रियारूप । इसलिये क्रियारूप होनेसे सब ही कर्म-योगके अन्तर्गत हैं । चित्तके निश्चयका नाम 'निष्ठा' है। जैसा जिसके चित्तका निश्चय है और जैसा जिसके चित्तका प्रवाह है, वैसी ही उसकी निष्ठा है । लोक में भी ऐसा ही प्रसिद्ध है, जैसा जिसके चित्तका प्रवाह होता है वैसी ही उसकी निष्ठा कही जाती है। जैसे कहा जाता है कि अमुक पुरुषकी निष्ठा संसारमें है, अमुकको धर्म में, अमुककी कर्ममें, अमुकको ध्यान व ज्ञानमें इत्यादि, निष्ठा चित्तका धर्म है । ___ 'योग' शब्द गीतामे केवल निष्काम कर्मके अर्थमें ही प्रयुक्त नहीं हुआ और न निष्काम-कर्म गीता-दृष्टि से 'योग' शब्दका मुख्य अर्थ है । 'योग' शब्दका मुख्य अर्थ गीतामें वह मिद्धावस्था है, जहाँ तत्त्वसाक्षात्कारद्वारा अपने आत्माका परमात्मासे मेल हो जाय, अभेद हो जाय । जहाँ देहाभिमान गलित होकर कई त्व-अहंकारसे छुट्टी मिल जाय और 'सर्व मैं ही हूँ' की अभेद-भावना करके भेद-भावना भाग जाय । यही अवस्था 'योग' शब्दका मुख्घ अर्थ है, गीताने स्वयं इस विषयको यू स्पष्ट किया है:सुखमात्यन्तिकं यत्तबुद्धिग्राह्यमतीन्द्रियम् । वेति यत्र न चैवायं स्थितश्चलति तत्त्वतः ।। यं लन्ध्या चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः । यस्मिन्स्थितोन दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते ॥ . तं विद्याइदुःखसंयोगवियोगं योगसंज्ञितम् । सनिश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विएणचेतसा ।। ६ श्लो २१-२३
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy