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________________ [३६ साधारण धर्म] (३) अनासक्त-व्यवहारिक-कर्म मन अधिकारियों के लिये एक ', ही प्रकारका होना चाहिये अथवा अधिकारानुसार उनका भेद हो सकता है ? और किसी अधिकारपर 'जहाँ उन ___ काँका त्याग प्रत्यवायरूप हो सकता है. वहाँ अन्य अधिकारको प्राम करके उन कोंका आचरण भी प्रत्या वायरूप हो सकता है वा नहीं ? अब इन चारों विकल्पोपर भिन्न-भिन्न विचार किया जाता है: . (अ) 'योग' शब्दका सामान्य अर्थ 'जुड़ना' 'मिलाप पाना' है। धर्मसम्बन्धमे जब 'योग' शब्दको प्रयोग होता है, तब वह चेष्टा जिसके द्वारा परमात्मामे चित्तको लगाव हो, 'योग' शब्दसे निरूपण की जाती है। इस प्रकार अधिकारभेद व साधनभेदमे योग अनेक प्रकारका वर्णन किया गया है। जैसे कर्मयोग, ध्यान-योग, भक्ति-योग, जप-योग, तप-योग, दान-योग, नान-योग, हठ-योग इत्यादि । ,अपने अधिकारानुसार जो अधिकारी जिस साधनद्वारा परमात्माके मम्मुख हुआ है, वह उसी 'योग" का योगी है । सांसारिक कामना न रख जो चेष्टाएँ केवल ईश्वरप्राप्तिरूप निमितसे आचरणमे लाई जाएँ वे सब 'योग' शब्दके अन्तर्गत आ जाती हैं, परन्तु गीतामें मुख्यतया 'योग' के 'नान-योग' और 'कर्मयोग' भेदसे दो ही भेद किये गये हैं। यथाःलोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानध। ज्ञानयोगेन सांख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम् ।। (अ. ३. ३.) अर्थात् इस लोकमें हैं निष्पाप अर्जुन ! मेरे द्वारा पहले दो प्रकारकी निष्ठा कही गई हैं, एक सांख्योंकी ज्ञान-योगसे और दूसरी योगियों की कर्म-योगसे।"
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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