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________________ २३३ ] [साधारण धर्म गणेश और सूर्यको यथारुचि कारणब्रह्मरूपसे निरूपण किया गया और उनकी भिन्न-भिन्न शक्तियोंको उनकी कृपाकटाक्षके अधीन दर्शाया गया। परन्तु जिनके मनमें शक्तिकी मुख्यता (विशेषता ) है, उनके लिये देवीको कारण-ब्रह्मरूपसे निरूपण किया गया और विष्णु-शिवादिकोंको उस शक्तिदेवीके अधीन उसकी उपासना करते हुए और उससे शक्ति प्राप्त करते हुए दर्शाया गया। जिसकी जिसमें रुचि हो वह उसको कारण-ब्रह्म, अर्थान् उत्पत्ति-स्थिति-लयकर्ता रूपसे और अन्य देवोंको उसके अंशरूप कार्यब्रह्म पसे चिन्तन करे, मूलमें कोई भेद नहीं। सबके मूलमें एक ही अचिन्त्य-चिन्मात्र-शक्ति है और ये सव रूप उसी की भिन्न-भिन्न झाँकियाँ हैं, जिसका मन जिस झाँकी पर रीम गया वह उसीपर लट्ट होगया। हाँ ! यह तो ठीक, मनको रिमाना तो उद्देश्य है ही, परन्तु अन्य मॉकियोंसे ग्लानि करना यह तो बड़ा पाप है। वास्तवमें इन सब झाँकियोंके नीचे एक ही विहारीजी अपना विहार कर रहे हैं, इसलिये उनकी किसी एक झाँकीसे प्रेम करके अन्यसे द्वेप करना तो उन विहारीजीसे ही द्वेष करना है। जैसे एक ही महाराजाधिराज काल भेदसे और कार्यभेदसे, अर्थात् दरबार, शिकार, सैर, जीनसवारी तथा रथसवारीके भेदसे समय-समयपर भिन्न-भिन्न पोशाके धारण करता है। यदि उसके सेवक उसकी किसी एक रूपकी पोशाकसे प्रेम करके अन्य पोशाकोंसे द्वेप करने लगे तो वह द्वेष उस महाराजाधिराजको ही स्पर्श करता है। ठीक, इसी प्रकार अपनी अन्य झॉकियोंके प्रति द्वेष देखकर बिहारीजी अपने इन मन्दबुद्धि प्रेमियोंपर हँसते हैं और क्रोध भी करते हैं, कि मेरी मॉकियों पर ही लड़-मंगड़कर इन मूल्ने मुझ वास्तव मॉकीवालेको तो मुला ही दिया। सत्त्व, रज और तमभेदसं उस शक्तिके तीन भेद हो सकते
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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