SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२३४ आत्मविलास] है। विश्वसहारकारिणी तमोगुणी शक्ति है जो कि 'काली' रूपस वर्णन की गई है और उसके सब म्प भयङ्कर है। विश्वोत्पादक रजोगुणी शक्ति है जो कि 'लक्ष्मी' आदि रूपसे निरूपण की गई है और स्थितिकारिणी सत्त्वगुणी शक्ति है जो 'गौरी' 'पात' आदि रूपमे सौम्यरूपसे निरूपण की गई है । चतुर्भुज और कहीं-कहीं अष्टभुज रूप जो दर्शाये गये हैं वे उसकी अनन्न शक्तिताके सूचक हैं। सिंहवाहन भी इसी श्राशयको सूचना देता है, चररूप प्राणियोंमे सिंह अद्वितीय शक्तिधारी है, वह शक्ति उस सिंहकी अपनी नहीं, किन्तु उसपर अधिकार उस देवीका ही है। सरस्वती, गायत्री आदिको हंसवाहन रूपसे दिखाया गया है, यह उसकी ज्ञानभूतिकी सूचना है । अथात जिस प्रकार हंस क्षीर-नीर मिले हुएमेसे सार वस्तु दूधको पान कर जाता है, वैसे ही उस ज्ञानमूर्तिने जड़-चेतनरूप संसारके मिश्रणमेंसे तत्त्व वस्तुको निकाल लिया है। सारांश, इन भावमयी मूर्तियोंमे कोई अङ्ग उस परमदेवकी विचित्र शक्तिकी सूचना देते हैं, कोई उसके विचित्र नीतियुक्त कार्यको, कोई उसकी प्राप्तिके साधनोंको और कोई उसके वास्तव स्वरूपको दशाते हैं। पञ्चदेवोंकी मूर्तियोंमे जो गम्भीर भाव है उसका दिग्दर्शनमात्र कराया गया, शेपमे तो भावराज्य के विस्तारका कोई अन्त ही नहीं है । भावुक अपनी बुद्धिके अनुसार सार ग्रहण कर सकते हैं । 'नास्त्यन्तो विस्तरस्य में' उपयुक्त पञ्चदेवोंको मुख्यरूपसे उपास्यदेव निरूपण किया पूजाका रहस्य ।। गया । वास्तवमें तो अखिल ब्रह्माण्ड ही भगवान्का मन्दिर और सम्पूर्ण चराचर भूतजात उस एक ही परमात्माकी भिन्न-भिन्न विभूतिरूपसे चिन्तन करनेयोग्य हैं। इसी आशयसे नागपूजा, पीपलपूजा, गोपूजा आदिका शास्त्रकारोंने विधान भी किया है और सकामी लोग
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy