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________________ [२३२ श्रामविलाम] अर्थात् सबमें सब रूपसे वह एक ही शक्ति अपना खेल खेल रही है । वही शक्ति सबके द्वारा उपास्य है । विष्णुकी उपाधि करके उसी शक्तिका नाम 'वैष्णवी' (लक्ष्मी), शिवकी उपाधि करके उमी शक्तिका नाम 'शिवा' (भवानी), गणेशकी उपाधि करके उसीका नाम 'गाणेशी' (सिद्धि) और सूर्यकी उपाधि करके उसीका नाम 'सौरी है। उपाधिभेदसे उसके नामोंका भेद है परन्तु रूपका भेद नहीं । विष्णवादि देवताओंकी मूर्तियोंमें उनको शक्तिको उनके वामाङ्गपर विराजमान किया गया है और उनकी शक्तिकी सव चेष्टाएँ उन देवोंकी कृपाकटाक्षके अधीन वर्णन की गई हैं। परन्तु इसके विपरीत शक्तिकी मूर्तिमें वे सव देव उस देवीके अधीन ओर उसकी उपासना करते हुए दशोये गये हैं। मन्दबुद्धि इसके आशयको न जान भ्रममे पड़ जाते हैं, परन्तु वास्तवमे इसके मूलमे किसी प्रकार विरोधकी आशङ्का नहीं है। इसका रहस्य नीचे स्पष्ट किया जाता है। ___ संसारमै शक्ति व शक्तिमान् दो ही पदार्थ हैं और दोनों को परम्पर एक-दूसरेकी अपेक्षा है । शक्तिसे भिन्न शक्तिमानका फाई स्वरूप नहीं रहता, जैसे रमके विना जलका कोई स्वरूप नहीं रहता। तथा किसी शक्तिमानरूप आधारके विना केवल शक्ति कोई कार्य नहीं कर सकती, जैसे विजुलो या भाप वाधारके बिना कोई कार्य नहीं कर सकते और आधारभेदसे इनके द्वारा भिन्न-भिन्न कार्य होते हैं। आधारभेदसे वही विजुली ग्लोबमें रोशनीका काम देती है, पद्धों में पताकुलीका ,और टेली फोनद्वारा मन्देश पहुँचाकर कासिदका काम देती है इत्यादि। यद्यपि विचारष्टिसे तो जैसे अग्नि व उष्णता परस्पर अभिन्न है वैने ही शक्ति व शक्तिमान् टोनोंका कोई भेद नहीं है, तथापि जिन मनम इनका भेद है और उस भेदको सम्मुख रखते हुए जिनके मतमे शक्तिमानकी मुख्यता है, उनके लिये विष्णु, शिव,
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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