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________________ गुणादिपरिचय। किया था। साथ ही, यह भी मालूम होता है कि सबसे पहले जिस प्रधान नगरके मध्यमें आपने वादकी भेरी बजाई थी वह 'पाटलीपुत्र' नामका शहर था, जिसे आजकल 'पटना' कहते हैं और जो सम्राट चंद्रगुप्त ( मौर्य ) की राजधानी रह चुका है। 'राजावलीकथे' नामकी कनडी ऐतिहासिक पुस्तकमें भी समंतभद्रका यह सब आत्मपरिचय दिया हुआ है—विशेषता सिर्फ इतनी ही है कि उसमें करहाटकसे पहले 'कर्णाट' नामके देशका भी उल्लेख है, ऐसा मिस्टर लेविस राइस साहब अपनी 'इन्स्क्रिप्शन्स ऐट् श्रवणबेलगोल' नामक पुस्तककी प्रस्तावनामें सूचित करते हैं। परंतु इससे यह मालूम न हो सका कि राजावली कथेका वह सब परिचय केवल कनडीमें ही दिया हुआ है या उसके लिये उक्त संस्कृत पद्यका भी, प्रमाण रूपसे उल्लेख किया गया है । यदि वह परिचय केवल कनड़ोमें ही है तब तो दूसरी बात है, और यदि उसके साथमें संस्कृत पद्य भी लगा हुआ है, जिसकी बहुत कुछ संभावना है, तो उसमें करहाटकसे पहले 'कर्णाट'का समावेश नहीं बन सकता; वैसा किये जाने पर छंदोभंग हो जाता है और गलती साफ तौरसे मालूम होने लगती है । हाँ, यह हो सकता है कि पद्यका तीसरा चरण ही उसमें 'कर्णाटे करहाटके बहुभटे विद्योत्कटे संकटे ' इस प्रकारसे दिया हुआ हो। यदि ऐसा है तो यह १ हमारी इस कल्पनाके बाद, बाबू छोटेलालजी जैन, एम. आर. ए. एस. कलकत्ताने, 'कर्णाटक शन्दानुशासन की लेविस राइस लिखित भूमिकाके आधार पर, एक अधूरासा नोट लिखकर हमारे पास मेजा है। उसमें समन्तभद्रके परिचयका डेढ पद्य दिया है, और उसे 'राजावलिक का बतलाया है, जिसमेंसे एक पद्य तो 'कांच्यां नमाटकोहं' वाला है और बाकीका आधा पद्य इस प्रकार है कर्णाटे करहाटके बहुमटे विद्योत्कटे संकटे वादार्थ विहार संप्रतिदिनं शार्दूलविक्रीडितम् ।
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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