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________________ wwwww गुणादिपरिचय। आपका विशेष अनुराग तथा प्रेम था और उसमें आपने जो असाधारण योग्यता प्राप्त की थी वह विद्वानोंसे छिपी नहीं है। अकेली 'स्तुतिविद्या' ही आपके अद्वितीय शब्दाधिपत्यको अथवा शब्दोंपर आपके एकाधिपस्यको सूचित करती है। आपकी जितनी कृतियाँ भव तक उपलब्ध हुई हैं वे सब संस्कृतमें ही हैं। परंतु इससे किसीको यह न समझ लेना चाहिए कि दूसरी भाषाओंमें आपने प्रथरचना न की होगी, की जरूर है; क्योंकि कनड़ी भाषाके प्राचीन कवियोंमें सभीने, अपने कनड़ी काव्योंमें उत्कृष्ट कविके रूपमें आपकी भूरि भूरि प्रशंसा की है * । और तामिल देशमें तो भाप उत्पन्न ही हुए थे, इससे तामिल भाषा आपकी मातृभाषा थी। उसमें ग्रंथरचनाका होना स्वाभाविक ही है। फिर भी संस्कृत भाषाके साहित्यपर आपकी अटल छाप थी । दक्षिण भारतमें उच्च कोटिके संस्कृत ज्ञानको प्रोत्तेजन, प्रोत्साहन और प्रसारण देनेवालोंमें आपका नाम खास तौरसे लिया जाता है। आपके समयसे संस्कृत साहित्यके इतिहासमें एक खासयुगका प्रारंभ होता है x; और इसीसे संस्कृत साहित्यके इतिहासमें आपका नाम अमर है। सचमुच ही आपकी विद्याके आलोकसे एक बार सारा भारतवर्ष आलोकित हो चुका है । देशमें जिस समय बौद्धादिकोंका ___* मिस्टर एस. एस. रामस्वामी आय्यंगर, एम० ए० भी अपनी 'स्टडीज इन साउथ इंडियन जैनिज्म' नामकी पुस्तकमें, बम्बई गजेटियर, जिल्द पहली, भाग दूसरा, पृष्ठ ४०६ के आधारपर लिखते हैं कि ' दक्षिण भारतमें समतभद्रका उदय, न सिर्फ दिगम्बर सम्प्रदायके इतिहासमें ही बल्कि, संस्कृत साहित्यके इतिहासमें भी एक खास युगको अंकित करता है।' यथा Samantbhadra's appearence in South India marks an epoch not only in the annals of Digambar Tradition, but also in the history of Sanskrit literature. ४ देखो हिस्टरी आफ कनडीज लिटरेचर ' तथा 'कर्णाटककविवरित।
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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