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________________ स्वामी समन्तभद्र। प्रबल आतंक छाया हुआ था और लोग उनके नैरात्म्यवाद, शून्यवाद क्षणिकवादादि सिद्धान्तोंसे संत्रस्त थे-घबरा रहे थे-अथवा उन एकान्त गोंमें पड़कर अपना आत्मपतन करनेके लिये विवश हो रहे थे उस समय दक्षिण भारतमें उदय होकर आपने जो लोकसेवा की है वहा बड़े ही महत्त्वकी तथा चिरस्मरणीय है। और इस लिये शुभचंद्राचार्यने जो आपको 'भारतभूषण' लिखा है वह बहुत ही युक्तियुक्त जान पड़ता है । स्वामी समंतभद्र, यद्यपि, बहुत से उत्तमोत्तम गुणों के स्वामी थे, फिर भी कवित्व, गमकत्व, वादित्व और वाग्मित्व नामके चार गुण आपमें असाधारण कोटिकी योग्यता वाले थे-ये चारों ही शक्तियाँ आपमें खास तौरसे विकाशको प्राप्त हुई थीं-और इनके कारण आपका निर्मल यश दूर दूर तक चारों ओर फैल गया था। उस वक्त जितने वादी, वाग्मी, कवि और गर्भक थे उन सब पर आपके यशकी समन्तभद्रो भद्रार्थो भातु भारतभूषणः ।-पांडवपुराण। २वादी विजयवाग्वृत्तिः'-जिसकी वचनप्रवृत्ति विजयकी ओर हो उसे 'वादी' कहते हैं। i. ३ ' वाग्मी तु जनरंजन:'-जो अपनी वाक्पटुता तथा शब्दचातुरीसे दूसरोंको रंजायमान करने अथवा अपना प्रेमी बना लेने में निपुण हो उसे ' वाग्मी' कहते हैं। ४'कविनूतनसंदर्भ:-जो नये नये संदर्भ-नई नई मौलिक रचनाएँ तयार करनेमें समर्थ हो वह कवि है, अथवा प्रतिभा ही जिसका उज्जीवन है, जो नानावर्णनाओंमें निपुण है, कृती है,नाना अभ्यासोंमें कुशलबुद्धि है और व्युत्पत्तिमान (लौकिक व्यवहारोंमें कुशल) है उसे भी कवि कहते है; यथा . प्रतिभोज्जीवनो नानावर्णना निपुण:कृती। नानाभ्यासकुशामीयमति युत्पत्तिमान्कविः। -अलंकारचिन्तामणि । ५ 'गमकः कृतिभेदका'-जो दूसरे विद्वानोंकी कृतियोंके मर्मको समझनेवाला उनकी तहतक पहुँचनेवाला हो और दूसरोंको उनका मर्म तथा रहस्य
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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