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________________ स्वामी समन्तभद्र। रक्खा हुआ उनका जन्मका शुभ नाम था । इस नामसे भी आपके क्षत्रियवंशोद्भव होनेका पता चलता है । यह नाम राजघरानोंका है । कदम्ब, गंग और पल्लव आदि वशोंमें कितने ही राजा वर्मान्त नामको लिये हुए हो गये हैं। कदम्बोंमें 'शांतिवर्मा' नामका भी एक राजा हुआ है। ___ यहाँ पर किसीको यह आशंका करनेकी जरूरत नहीं कि 'जिनस्तुतिशतं ' नामका ग्रंथ समंतभद्रका बनाया हुआ न होकर शांतिवर्मा नामके किसी दूसरे ही विद्वान्का बनाया हुआ होगा; क्योंकि यह ग्रंथ निर्विवाद रूपसे स्वामी समंतभद्रका बनाया हुआ माना जाता है । ग्रंथकी प्रतियोंमें कर्तृत्वरूपसे समंतभद्रका नाम लगा हुआ है, टीकाकार महाकवि नरसिंहने भी उसे 'तार्किकचूडामणिश्रीमत्समंतभद्राचार्यविरचित' सूचित कि - और दूसरे आचार्यों तथा विद्वानोंने भी उसके वाक्योंका, समंतभद्रके नामसे, अपने ग्रंथों में उल्लेख किया है । उदाहरणके लिये 'अलंकारचिन्तामणि ' को लीजिये, जिसमें अजितसेनाचार्यने निम्नप्रतिज्ञावाक्यके साथ इस ग्रंथके कितने ही पद्योंको प्रमाणरूपसे उद्धृत किया है श्रीमत्समंतभद्रार्यजिनसेनादिभाषितम् । लक्ष्यमात्र लिखामि स्वनामसूचितलक्षणम् ॥ इसके सिवाय पं० जिनदास पार्श्वनाथजी फडकुलेने 'स्वयंभूस्तोत्र' का जो संस्करण संस्कृतटीका और मराठी अनुवाद सहित प्रकाशित कराया है उसमें समंतभद्रका परिचय देते हुए उन्होंने यह सूचित किया है कि कर्णाटकदेशस्थित 'अष्टसहस्री' की एक प्रतिमें आचार्यके नामका इस प्रकारसे उल्लेख किया है-" इति फणिमंडलालंकारस्योरगपुराधिपसूनुना शांतिवर्मनामा श्रीसम
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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