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________________ पितृकुल और गुरुकुल । तमद्रेण ।" यदि पंडितजीकी यह सूचना सत्य x हो तो इससे यह विषय और भी स्पष्ट हो जाता है कि शांतिवर्मा समन्तभद्रका ही नाम था। वास्तवमें ऐसे ही महत्वपूर्ण काव्यग्रंथोंके द्वारा समन्तभद्रकी काव्यकीर्ति जगतमें विस्तारको प्राप्त हुई है । इस प्रथमें आपने जो अपूर्व शब्दचातुर्यको लिये हुए निर्मल भक्तिगंगा बहाई है उसके उपयुक्त पात्र भी आप ही है। आपसे भिन्न 'शांतिवर्मा' नामका xपं० जिनदासकी इस सूचनाको देखकर हमने पत्रद्वारा उनसे यह मालूम करना चाहा कि कर्णाटक देशसे मिली हुई अष्टसहस्रीकी बह कौनसी प्रति है और कहाँके भंडारमें पाई जाती है जिसमें उक्त उल्लेख मिलता है । क्योंकि दौर्बलि जिनदास शास्त्रीके भंडारसे मिली हुई 'आप्तमीमांसा 'के उल्लेम्वसे यह उल्लेख कुछ भिन्न है। उत्तरमें आपने यही सूचित किया कि यह उल्लेख पं० वंशीधरजीकी लिखी हुई अष्टसहस्रीकी प्रस्तावना परसे लिया गया है, इस लिये इस विषयका प्रश्न उन्हींसे करना चाहिये । अष्टसहस्रीकी प्रस्तावना ( परिचय ) को देखने पर मालम हुआ कि उसमें 'इति' से 'समन्तभद्रेण ' तकका उक्त उल्लेख ज्योंका त्यों पाया जाता है, उसके शुरूमें ‘कर्णाटदेशतो लब्धपुस्तके' और अन्तमें ' इत्याद्युल्लेखो दृश्यते ' ये शब्द लगे हुए हैं । इसपर गत ता० ११ जुलाईको एक रजिष्टर्ड पत्र पं० वंशीधरजोको शोलापुर मेजा गया और उनसे अपने उक्त उल्लेखका खुलासा करनेके लिये प्रार्थना की गई। साथ ही यह भी लिखा गया कि ' यदि आपने स्वयं उस कर्णाट देशसे मिली हुई पुस्तकको न देखा हो तो जिस आधार पर आपने उक्त उल्लेख किया है उसे ही कृपया सूचित कीजिये । ३री अगस्त सन् १९२४ को दूसरा रिमाइण्डर पत्र भी दिया गया परंतु पंडितजीने दोनों मेंसे किसीका भी कोई उत्तर देने की कृपा नहीं की । और भी कहींसे इस उल्लेखका समर्थन नहीं मिला। ऐसी हालतमें यह उल्लेख कुछ संदिग्ध मालूम होता है। आश्चर्य नहीं जो जैनहितैषीमें प्रकाशित उक्त 'आप्तमीमांसा के उल्लेखकी गलत स्मृति परसे ही यह उल्लेख कर दिया गया हो; क्योंकि उक्त प्रस्तावनामें ऐसे और भी कुछ गलत उल्लेख पाये जाते हैंजैसे 'कांच्यां नग्नाटकोऽहं' नामक पद्यको मल्लिषेणप्रशस्तिका बतलाना, जिसका वह पद्य नहीं है।
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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