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________________ पितृकुल और गुरुकुल । राजा थे, और इस लिये उरगपुरको आपकी जन्मभूमि अथवा बाल्यलीलाभूमि समझना चाहिये । ' राजावलीकथे' में आपका जन्म ' उत्वलिका ' ग्राममें होना लिखा है जो प्रायः उरगपुरके ही अंतर्गत होगा । यह उरगपुर ' उरैयूर' का ही संस्कृत अथवा श्रुतिमधुर नाम जान पड़ता है जो चोल राजाओंकी सबसे प्राचीन ऐतिहासिक राजधानी थी। पुरानी त्रिचिनापोली भी इसीको कहते हैं । यह नगर कावेरीके तटपर बसा हुआ था, बन्दरगाह था और किसी समय बड़ा ही समृद्धिशाली जनपद था। ___ समंतभद्रका बनाया हुआ - स्तुतिविद्या' अथवा 'जिनस्तुतिशतं ' नामका एक अलंकारप्रधान ग्रंथ है, जिसे 'जिनशतक' अथवा 'जिनशतकालंकार' भी कहते हैं । इस ग्रंथका 'गत्वैकस्तुतमेव' नामका जो अन्तिम पद्य है वह कवि और काव्यके नामको लिये हुए एक चित्रबद्ध काव्य है । इस काव्यकी छह आरे और नव क्लयवाली चित्ररचनापरसे ये दो पद निकलते हैं ___ शांतिवर्मकृतं,' 'जिनस्तुतिशतं'। इनसे स्पष्ट है कि यह ग्रंथ 'शान्तिवर्मा ' का बनाया हुआ है और इस लिये ' शान्तिवर्मा ' समंतभद्रका ही नामान्तर है । परंतु यह नाम उनके मुनिजीवनका नहीं हो सकता; क्योंकि मुनियोंके 'वर्मान्त' नाम नहीं होते । जान पड़ता है यह आचार्य महोदयके मातापितादिद्वारा १महाकवि कालिदासने अपने रघुवंश ' में भी 'उरगपुर ' नामसे इस नगरका उल्लेख किया है। २ यह नाम ग्रंथके आदिम मंगलाचरणमें दिये हुए 'स्तुतिविद्या प्रसाधये' इस प्रतिज्ञावाक्यसे पाया जाता है। ३ देखो महाकवि नरसिंहकृत 'जिनशतक-टीका'।
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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