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________________ ११२ स्वामी समन्तभद्र। इत्यादि बातें भी उसकी कुछ ऐसी ही हैं जो जीको नहीं लगती और मापत्तिके योग्य जान पड़ती हैं । नेमिदत्तकी इस कथापरसे ही कुछ विद्वानोंका यह खयाल हो गया था कि इसमें जिनबिम्बके प्रकट होनेकी जो बात कही गई है वह भी शायद कृत्रिम ही है और वह 'प्रभावकचरित'में दी हुई 'सिद्धसेन दिवाकर की कथासे, कुछ परिवर्तनके साथ ले ली गई जान पड़ती है---उसमें भी स्तुति पढ़ते हुए, इसी तरह पर पार्श्वनाथका बिम्ब प्रकट होनेकी बात लिखी है । परंतु उनका वह खयाल गलत था और उसका निरसन श्रवणबेलगोलके उस मल्लिषेणप्रशस्ति नामक शिलालेखसे भले प्रकार हो जाता है, जिसका 'वंद्यो मस्मक' नामका प्रकृत पद्य ऊपर उद्धृत किया जा चुका है और जो उक्त प्रभावकचरितसे १५९ वर्ष पहलेका लिखा हुआ है-प्रभावक चरितका निर्माणकाल वि० सं० १३३४ है और शिलालेख शक संवत् १०५० (वि० सं० १९८५) का लिखा हुआ है। इससे स्पष्ट है कि चंद्रप्रभ बिम्बके प्रकट होनेकी बात उक्त कथा परसे नहीं ली गई बल्कि वह समंतभद्रकी कथासे खास तौरपर सम्बंध रखती है। दूसरे एक प्रकारकी घटनाका दो स्थानोंपर होना कोई अस्वाभाविक भी नहीं है । हाँ, यह हो सकता है कि नमस्कारके लिये आग्रह आदिकी बात उक्त कथा परसे ले ली गई हो। क्योंकि राजावलिकथे आदिसे उसका कोई समर्थन नहीं १ यदि प्रभाचन्द्रभहारकका गद्य कथाकोश, जिसके आधारपर नेमिदत्तने अपने कथाकोशकी रचना की है, 'प्रभावकचरित'से पहलेका बना हुआ है तो यह भी हो सकता है कि उसपरसे ही प्रभावकचरितमें यह बात ले ली गई हो। परंतु साहित्यकी एकतादि कुछ विशेष प्रमाणों के विना दोनोंहीके सम्बन्धमें यह कोई लाजिमी बात नहीं है कि एकने इसरेकी नकल ही की हो; क्योंकि एक प्रकारके विचारोंका दो ग्रंथकर्ताओंके हृदयमें उदय होना भी कोई असंभव नहीं है।
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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