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________________ मुनि-जीवन और आपत्काल । १११ मस्मक व्याधिकी शांति आदिका विधान करती है और सेनगणकी पट्टाबलीसे भी उसका बहुत कुछ समर्थन होता है । जहाँ तक हमने इन दोनों कथाओंकी जाँच की है हमें 'राजावलिकथे' में दी हुई समंतभद्रकी कथामें बहुत कुछ स्वाभाविकता मालूम होती हैमणुवकहल्लि ग्राममें तपश्चरण करते हुए भस्मक व्याधिका उत्पन्न होना, उसकी निःप्रतीकारावस्थाको देखकर समंतभद्रका गुरुसे सल्लेखना व्रतकी प्रार्थना करना, गुरुका प्रार्थनाको अस्वीकार करते हुए मुनिवेष छोड़ने और रोगोपशांतिके पश्चात् पुजिनदीक्षा धारण करनेकी प्रेरणा करना, 'भीमलिंग' नामक शिवारयका और उसमें प्रतिदिन १२ खंडुग परिमाण तंडुलानके विनियोगका उल्लेख, शिवकोटि राजाको आशीर्वाद देकर उसके धर्मकृत्योंका पूछना, क्रमशः भोजनका अधिक अधिक बचना, उपसर्गका अनुभव होते ही उसकी निवृत्तिपर्यंत समस्त आहार पानादिकका त्याग करके समंतभद्रका पहलेसे ही जिनस्तुतिमें लीन होना, चंद्रप्रभकी स्तुतिके बाद शेष तीर्थकरोंकी स्तुति भी करते रहना, महावीर भगवान्की स्तुतिकी समाप्तिपर चरणोमें पड़े हुए राजा और उसके छोटे भाई. को आशीर्वाद देकर उन्हें सद्धर्मका विस्तृत स्वरूप बतलाना, राजाके पुत्र 'श्रीकंठ'का नामोल्लेख, राजाके भाई ‘शिवायन'का भी राजाके साथ दीक्षा लेना, और समंतभद्रकी ओरसे भीमलिंग नामक महादेवके विषयमें एक शब्द भी अविनय या अपमानका न कहा जाना, ये सब बातें, जो नेमिदत्तकी कथामें नहीं हैं, इस कथाकी स्वाभाविकताको बहुत कुछ बढ़ा देती हैं-प्रत्युत इसके, नेमिदत्तकी कथासे कृत्रिमताकी बहुत कुछ गंध आती है, जिसका कितना ही परिचय ऊपर दिया जा चुका है। उसके सिवाय, राजाका नमस्कारके लिये आग्रह, समन्तभद्रका उत्तर, और अगले दिन नमस्कार करनेका वादा,
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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